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- Leaked Gas Styrene In Visakhapatnam; If Breathed In, It Kills Life In 10 Minutes, Cancer Results In Long Effect.
विशाखापट्टनम2 महीने पहले
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आंध्रप्रदेश के विशाखापट्टनम में गुरुवार तड़के एलजी कम्पनी के केमिकल प्लांट से जो गैस लीक हुई है उसका नाम स्टाइरीन (styrene) गैस है। स्टाइरीन एक न्यूरो-टॉक्सिन और दम घोंटू गैस है जिससे सिर्फ दस मिनट में शरीर शिथिल पड़ जाता है और मौत हो जाती है। इस गैस पर हुई स्टडी में इसे कैंसर और जेनेटिक म्यूटेशन का कारण भी बताया गया है। पुलिस कमिशनर राजीव कुमार मीणा के मुताबिक शुरुआती रिपोर्टों के मुताबिक, प्लांट से स्टाइरीन गैस का रिसाव हो रहा था और इलाके के लोग अनजान थे।
181 साल पुराना है स्टाइरीन का इतिहास
दुनिया में स्टाइरीन को पहली बार करीब 181 साल पहले यूरोप के वैज्ञानिकों ने पहचाना। 1839 में, जर्मन विज्ञानी एडुअर्ड साइमन ने अपनी प्रयोगशाला में अमेरिकी स्वीटगम नाम के पेड़ से निकली राल या रेजिन से एक वाष्पशील तरल को अलग करने में कामयाबी पाई। दुर्घटनावश, वे जिस पदार्थ तक पहुंचे उन्होंने इसे “स्टाइलोल” (अब स्टाइरीन) नाम दिया।
उन्होंने यह भी देखा कि जब स्टाइलोल को हवा, प्रकाश या गर्मी के संपर्क में लाया गया तो यह धीरे-धीरे एक कठोर, रबड़ जैसे पदार्थ में बदल गया, जिसे उन्होंने “स्टाइलर ऑक्साइड” कहा। 1845 में जर्मन केमिस्ट ऑगस्ट हॉफमैन और उनके छात्र जॉन बेलीथ ने स्टाइलिन के फार्मूला दिया जो C8H8 के नाम से मशहूर हुआ। इसमें कार्बन के 8 और हाइड्रोजन के 8 अणु आपस में गुंथे होते हैं।
पीवीसी गैस है बहुत उपयोगी
इसे बोलचाल की भाषा में पीवीसी गैस या विनाइल बेंजीन भी कहते हैं जिसका उपयोग पॉलीविनाइल क्लोराइड (पीवीसी) के रबर, रेसिन, पॉलिस्टर और प्लास्टिक उत्पादन के लिए किया जाता है। पीवीसी एक सिंथेटिक प्लास्टिक है जिसे कठोर या लचीले रूपों में पाया जा सकता है। यह आमतौर पर पाइप और बोतल बनाने के लिए उपयोग किया जाता है।
करीब 99% इंडस्ट्रियल रेजिन स्टाइरीन से ही बनाए जाते हैं। इन्हें छह प्रमुख हैं: पॉलीस्टाइनिन (50%), स्टाइलिन-ब्यूटाडीन रबर (15%), अनसैचुरेटड पॉलिएस्टर रेजिन (ग्लास ) (12%), स्टाइरीन-ब्यूटाडीन लेटेक्स ( 11%), एक्रिलोनिट्राइल-ब्यूटाडीन-स्टाइरीन (10%) और स्टाइरीन-एक्रिलोनिट्राइल (1%)।
मीठी गंध वाली गैस की केमेस्ट्री
स्टाइरीन एक आर्गनिक कम्पाउंड और इसे एथेनिल बेंजीन, विनाइल बेंजीन और फेनिलिथीन के रूप में भी जाना जाता है। इसका केमिकल फार्मूला C6H5CH = CH2 है। यह सबसे लोकप्रिय आर्गनिक सॉल्वेंट बेंजीन से पैदा हुआ पानी की तरह रंगहीन या हल्का सा पीला तैलीय तरल है और इसी से गैस निकलती है।
यह तरल आसानी से कमरे के तापमान पर गैस रूप में हवा में मिल जाता है और इसमें एक मीठी गंध होती है, हालांकि बहुत ज्यादा मात्रा में होने पर गंध दम घोंटने लगती है। स्टाइरीन से पॉलीस्टाइरीन और कई अन्य को-पोलिमर बनाए जाते हैं जो विभिन्न पॉलीमर उत्पाद (प्लास्टिक, फाइबर ग्लास, रबर, पाइप) बनाने के काम आते हैं है।
सांस में जाने पर तत्काल प्रभाव
स्टाइरीन गैस नाक में जाने पर सांस लेना मुश्किल हो जाता है। ऊबकाई के साथ और आंखों में जलन हो सकती है। सांस में जाने पर यह कुछ ही मिनटों में हमारी श्वसन प्रणाली को प्रभावित करता है और उल्टी, जलन और त्वचा पर चकत्ते पैदा कर सकती है। रोग नियंत्रण केंद्र (सीडीसी) के मुताबिक गैस का अल्पकालिक जोखिम छोटे बच्चों और बुजुर्गों के लिए घातक हो सकता है।
आंखों में जलन, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल प्रभाव (जैसे पेट खराब होना) और टिश्यूज की ऊपरी सतह में जलन हो सकती है। यह शरीर के कोमल अंगों के टिश्यूज के अस्तर को नष्ट करने की क्षमता रखती है और इसके कारण रक्तस्राव हो सकता है। इससे तुरंत बेहोशी और यहां तक कि कुछ ही मिनटों में मौत भी हो सकती है।
लम्बे समय तक प्रभाव
यहां तक कि जो लोग स्टाइरीन की घातक चपेट में आने के बाद बच जाते हैं, उन्हें बाद में इसके विषैले प्रभावों के साथ जीना पड़ सकता है। न्यूरोटॉक्सिन होने कारण इसका तंत्रिका तंत्र पर प्रभाव पड़ता है और यह सिरदर्द, थकान, कमजोरी और अवसाद, नर्वस सिस्टम की शिथिलता का कारण बन सकता है। इसके लम्बे प्रभाव के कारण हाथ और पैर जैसे सुन्नता, आंखों को नुकसान, सुनाई न देना और त्वचा पर डर्मीटाइटिस जैसी बीमारी देखने को मिलती है।
तुरंत उपचार
गैस के प्रभाव का इलाज करने का एकमात्र तरीका त्वचा और आंखों को पानी से धोना है और सांस के साथ अंदर जाने की स्थिति में तुरंत मेडिकल चिकित्सा शुरू करके ब्रीदिंग सपोर्ट पर जाना है।
भोपाल की मिक Vs विशाखापट्टनम की स्टाइरीन गैस
मध्यप्रदेश के भोपाल में अमेरिकी यूनियन कार्बाइड कंपनी के कारखाना में 3 दिसंबर 1984 को 42 हजार किलो जहरीली गैस का रिसाव होने से करीब 15 हजार से अधिक लोगों की जान गई थी और लाखों प्रभावित हुए थे। यह गैस भी एक आर्गनिक कम्पाउंड से निकली मिथाइल आईसोसाइनेट या मिक गैस थी जो कीटनाशक बनाने की काम आती है।
इतने साल के बाद भी इस गैस का असर पुराने भोपाल शहर के लोगों में देखा जा सकता है। हजारों लोग स्थायी अपंगता, कैंसर और नेत्रहीनता का शिकार हो गए। इस गैस ने अजन्में बच्चों तक को प्रभावित किया था। जहां विशाखापट्टनम प्लांट से निकली स्टाइरीन का रिएक्शन टाइम 10 मिनट का है, वहीं मिक गैस महज कुछ सेकंड में जान चली जाती है।
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