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  • कुवैत सरकार विदेशी नागरिकों की संख्या घटाना चाह रही है, इसके लिए कानून का मसौदा तैयार किया है
  • अगर यह कानून लागू हो गया तो कम से कम तीन से चार लाख भारतीयों को कुवैत छोड़ना पड़ सकता है

दैनिक भास्कर

Jul 08, 2020, 06:08 AM IST

चारु कार्तिकेय. कुवैत सरकार देश में काम करने वाले प्रवासी नागरिकों की संख्या कम करना चाह रही है, इसके लिए एक कानून का मसौदा तैयार किया गया है। इस कानून का सबसे बड़ा असर भारतीय नागरिकों पर हो सकता है। कुवैत में अभी करीब 10 लाख भारतीय नागरिक रहते हैं।
हालांकि, इस कानून का असर कुवैत में काम करने वाले सभी देशों के नागरिकों पर होगा, लेकिन सबसे ज्यादा भारतीय नागरिक प्रभावित होंगे, क्योंकि प्रवासियों में सबसे बड़ी संख्या भारतीयों की ही है। अगर यह कानून पारित हो गया तो संभावना है कि तीन से चार लाख प्रवासी भारतीयों को देश छोड़ना पड़ सकता है।

  • कुवैत की समस्या

देश की कुल आबादी में 70 फीसदी प्रवासी हैं

  • धीरे-धीरे बड़ी संख्या में प्रवासियों को अपनी तरफ आकर्षित करते करते कुवैत एक प्रवासी-बहुल देश बन गया है। देश की कुल 48 लाख आबादी में सिर्फ 30% कुवैती और 70% प्रवासी हैं। लेकिन आर्थिक चुनौतियों की वजह से अब वहां प्रवासी-विरोधी भावनाएं गहरा रही हैं, जिसकी वजह से सरकार को इस समस्या पर ध्यान देना पड़ा।
  • कुवैत सरकार ने लक्ष्य बनाया है कि आबादी में प्रवासियों की संख्या को 70% से कम कर के 30% पर लाना है। मीडिया में आई खबरों के अनुसार प्रस्तावित कानून में देश की आबादी में प्रवासी भारतीयों की संख्या घटाकर आबादी का 15% करने की बात की गई है। 
  • अगर यह कानून लागू हो गया तो सिर्फ लगभग सात लाख प्रवासी भारतीयों को ही कुवैत में रहने की अनुमति मिल पाएगी और कम से कम तीन से चार लाख भारतीयों को कुवैत छोड़ना पड़ेगा।
  • स्थानीय मीडिया में कहा जा रहा है कि करीब आठ लाख भारतीयों को देश छोड़ना पड़ सकता है। इस कानून को अभी तक कुवैती संसद की दो महत्वपूर्ण समितियों से स्वीकृति मिल चुकी है और एक और समिति से स्वीकृति मिलना बाकी है।

2018 में कुवैत से भारतीयों ने 4 अरब 80 करोड़ रुपए स्वदेश भेजा था

  • जानकार इसे भारत के लिए एक गंभीर चिंता का विषय मान रहे हैं। लाखों भारतीय कुवैत में काम तो करते ही हैं, वे हर साल भारत में अपनी परिवारों के लिए पैसे भी भेजते हैं, जो भारत की ही अर्थव्यवस्था के काम आता है। 
  • एक अनुमान के अनुसार 2018 में कुवैत से भारत वापस भेजी हुई यही रकम 4 अरब 80 करोड़ रुपए के आसपास थी। मध्य-एशिया के मामलों के जानकार डॉक्टर जाकिर हुसैन कहते हैं कि सिर्फ पैसों की बात नहीं है, बल्कि लोगों की आजीविका और दोनों देशों के बीच रिश्तों का सवाल है।
  • हुसैन कहते हैं कि 90 के दशक में भी इसी तरह कुवैत से प्रवासियों को निकाला गया था, लेकिन उस समय कई दूसरे देशों के नागरिकों को निकाल कर भारतीयों को उनका स्थान दिया गया था। इसमें खाड़ी के देशों की बदलती राजनीति की भी झलक है।
  • हुसैन के मुताबिक, जहां बीते कुछ सालों में खाड़ी के देशों के साथ भारत के संबंध काफी मजबूत हो गए थे। वहीं, अब उन रिश्तों में गिरावट देखने को मिल रही है, नहीं तो क्या वजह है कि भारत-चीन सीमा पर चीनी सेना की कार्रवाई के खिलाफ अभी तक खाड़ी के किसी भी देश ने भारत के साथ एकजुटता नहीं जताई?
  • जानकारों का मानना है कि अभी भी अगर भारत कूटनीतिक स्तर पर कुवैत सरकार से बात करे तो लाखों भारतीयों पर आने वाला संकट टल सकता है, लेकिन भारत सरकार ने इस विषय पर अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है।



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