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  • कोलोराडो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के मुताबिक, कोरोना के मरीजों में तेजी से रक्त के थक्के जम रहे हैं
  • मरीजों की थ्रॉम्बोइलास्टोग्राफी कराकर ये देखा जा सकता है कि उनमें कब और कैसे रक्त के थक्के बन रहे हैं

दैनिक भास्कर

May 18, 2020, 10:08 PM IST

कोरोना के गंभीर मरीजों का शुरुआत में ही ब्लड क्लॉट टेस्ट कराया जाए तो स्ट्रोक और किडनी फेल्योर का खतरा कम किया जा सकता है। यह दावा अमेरिकी वैज्ञानिकों ने किया है। कोलोराडो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि कोरोना के मरीजों में तेजी से रक्त के थक्के जम रहे हैं। मरीजों की थ्रॉम्बोइलास्टोग्राफी कराकर ये देखा जा सकता है कि उनमें कब और कैसे रक्त के थक्के बन रहे हैं।

थक्के अधिक बढ़ने पर ब्लीडिंग शुरू होती है

अमेरिकन कॉलेज ऑफ सर्जन्स जर्नल में प्रकाशित शोध के मुतातिक, इस जांच की मदद से कोरोना पीड़ितों की हालत नाजुक होने से रोकी जा सकती है। इसकी शुरुआत धमनियों में रक्त के थक्के जमने से होती है। धीरे-धीरे थक्के बढ़ने पर स्थिति गंभीर हो जाती है ब्लीडिंग शुरू होती है।

टेस्ट से डी-डाइमर मॉलीक्यूल का स्तर जांचा गया  

शोधकर्ताओं के मुताबिक, कोरोना से पीड़ित 44 मरीजों पर रिसर्च की गई। उनके इलाज में दूसरी जांच की तरह थ्रॉम्बोइलास्टोग्राफी को भी शामिल किया गया। जांच के दौरान शरीर में डी-डाइमर मॉलीक्यूल का स्तर देखा गया। डी-डाइमर एक तरह का प्रोटीन का टुकड़ा है यह तब बनता है जब शरीर में रक्त के थक्के जमते हैं। ऐसा 80 फीसदी मरीजों ऐसा देखा गया।

आयरलैंड के शोधकर्ताओं ने भी आगाह किया

आयरलैंड के शोधकर्ताओं ने अपनी रिसर्च में कहा है कि कोरोनावायरस शरीर में खून के थक्के जमाकर फेफड़ों को ब्लॉक कर सकता है। कोरोना से पीड़ित 83 गंभीर मरीजों पर हुई स्टडी के दौरान वायरस का एक और खतरा सामने आया है। डबलिन के सेंट जेम्स हॉस्पिटल के डॉक्टरों का कहना है कि यह नया वायरस फेफड़ों में करीब 100 छोटे-छोटे ब्लॉकेज बना देता है जिससे शरीर में ऑक्सीजन का स्तर घट जाता है और मरीज की मौत भी हो सकती है। 

थक्के फेफड़े पर हमला करते हैं
शोधकर्ता प्रो. जेम्स ओ-डोनेल का कहना है कि कोविड-19 एक खास तरह के ब्लड क्लॉटिंग डिसऑर्डर (खून के थक्के) की वजह बनता है जो सीधे तौर पर सबसे पहले फेफड़ों पर हमला करता है। 



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