- कोरोनावायरस की एंटीबॉडी शरीर में कितने दिनों तक रहेगी, इस पर शोध हो रहे हैं और कुछ कहा नहीं जा सकता
- हमारे देश में मौत का आंकड़ा 2.6 फीसदी है जबकि अमेरिका जैसे देश कई गुना अधिक है, इसलिए घबराने या तनाव की जरूरत नहीं।
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दैनिक भास्कर
May 23, 2020, 04:21 PM IST
नई दिल्ली. देश में कोरोना संक्रमण के मामले क्यों बढ़ रहे हैं, जिनमें लक्षण नहीं दिख रहे उनसे कैसे बचें और वैक्सीन पर चल रहे शोध की नई जानकारी क्या है…ऐसे कई सवालों के जवाब पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. के श्रीनाथ रेड्डी ने आकाशवाणी को दिए। जानिए कोरोना से जुड़े सवाल और एक्सपर्ट के जवाब…
#1) कोरोना से ठीक हो चुके लोगों की एंटीबॉडी कितने दिनों तक रहती है?
कोरोनावायरस एक नया वायरस है, कई शोध रोज हो रहे हैं और सामने आ रहे हैं। नया वायरस का असर कितना हो रहा है और एंटीबॉडी कितने दिनों तक रहेगी यह साल के अंत तक पता चल सकेगा। ये वायरस सभी देशों में मौजूद है, इसलिए अभी कुछ नहीं कहा जा सकता।
#2) कोरोनावायरस की एंटीबॉडी और दूसरी वायरल बीमारियों की एंटीबॉडी शरीर में कितने दिनों तक रहती है?
दोनों में काफी फर्क है। अगर स्मॉलपॉक्स की वैक्सीन शुरुआत में लगाते हैं तो वो एंटीबॉडी जिंदगीभर रहती है। फ्लू की एंटीबॉडी एक या दो साल तक रहती है जबकि कॉमन कोल्ड या नजला भी वायरस से होता है। उसकी भी एंटीबॉडी दो-तीन महीने तक रहती है। एंटीबॉडी शरीर में बार-बार बनती रहती है।
#3) वैक्सीन को लेकर शोध हो रहे हैं उसमें ताजा जानकारी क्या है?
कई देश वैक्सीन की खोज में लगे हैं लेकिन कहां की वैक्सीन सफल होगी, कितनी महत्वपूर्ण होगी यह आने वाले समय में पता चलेगा। लेकिन कुछ देशों ने कहा है कि सितंबर में शुरुआती ट्रायल खत्म हो जाएंगे। फिर आगे के ट्रायल होंगे। डब्ल्यूएचओ के अनुसार, एक अचछी वैक्सीन आने में 18 महीने लगेंगे। वैक्सीन के ट्रायल कई चरण में होते है और सारी दुनिया को उपलब्ध कराने में वक्त लग सकता है। लेकिन एक बात अच्छी है कि भारत में किसी भी तरह की वैक्सीन प्रोडक्शन की क्षमता बहुत है। वैक्सीन की खोज कहीं भी हो लेकिन उत्पादन के लिए दुनिया के कई देश भारत पर निर्भर रह सकते हैं।
#4) जो लोग घर में बैठकर तनाव ले रहे हैं, उन्हें आप क्या सलाह देंगे?
लोगों को समझने की जरूरत है कि कोई एक देश नहीं बल्कि वायरस से पूरी दुनिया लड़ रही है। आपके शहर में, समाज में, देश में, विदेश में, हर जगह लॉकडाउन है और यह आपको बचाने के लिए हैं। अगर घर में हैं तो अपनी क्रिएटिविटी का प्रयोग करें। प्रकृति खुद को बदल रही है उसका आनंद लें।
#5) क्वारैंटाइन और आइसोलेशन में क्या अंतर है?
जब हमे पता नहीं होता किसी को वायरस का संक्रमण है या नहीं, तब व्यक्ति को निगरानी में रखा जाता है और उसकी जांच की जाती है, इसे क्वारैंटाइन कहते हैं। आइसोलेशन में वायरस के संक्रमण का सबूत मिल चुका होता है और उसे बाकियों से अलग रखते हैं ताकि दूसरों तक संक्रमण न पहुंचे। कई बार लोगों में जब तक लक्षण नहीं दिखता तब तक होम क्वारैंटाइन के लिए भेज दिया जाता है। होम आइसोलेशन या क्वारैंटाइन के दौरान घर में किसी के भी सम्पर्क में आने से बचें।
#6) जिनमें लक्षण नहीं है, ऐसे लोगों से कैसे सुरक्षित रहें?
कई लोगों में संक्रमण होने के कई दिन बाद लक्षण आते हैं तब तक उनसे कई लोग संक्रमित हो सकते हैं। इसलिए ऐसे लोगों से बचने के लिए सिर्फ एक ही उपाय है, लोग खुद की सुरक्षा करें। खतरा किस ओर से आ रहा है, इसकी जानकारी नहीं होती। कौन एसिम्प्टोमैटिक है और प्री-एसिम्प्टोमैटिक या कौन वायरस से संक्रमित है, किसी का पता नहीं चलता। इसलिए उचित दूरी बनाकर रखें और मास्क का प्रयोग करें।
#7) कोरोनावायरस के केस बढ़ रहे हैं, इसे कैसे देखते हैं?
मरीजों की संख्या टेस्टिंग पर आधारित है। पहले से अब टेस्ट बढ़े हैं इसलिए अब वो लोग सामने आ रहे हैं जिनमें बहुत कम लक्षण हैं। केस बढ़ रहे हैं लेकिन ये जल्द ही ठीक होने वाले हैं। हमारे देश में मृत्यु का आंकड़ा 2.6 फीसदी है जबकि अमेरिका जैसे देश कई गुना अधिक है। इसलिए घबराने की जरूरत नहीं। अभी भी यहां स्थिति कंट्रोल में है लेकिन लॉकडाउन खुलने के बाद बहुत सावधानी बरतनी होगी।