- कोरोना को हराने वाली एनेस्थीसिया विभाग की रेसीडेंट डॉक्टर अदिती कहती हैं- मरीज डॉक्टर के लिए बहुत बड़ी उम्मीद होते हैं
- कोरोना संक्रमितों को लेकर नफरत की सोच बदलनी होगी, उनके प्रति व्यवहार सुधारना होगा
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दैनिक भास्कर
May 23, 2020, 12:19 PM IST
मरीजों के लिए डॉक्टर बहुत बड़ी उम्मीद होते हैं। जब आपकी सेहत को लेकर गड़बड़ चल रही हो और दिल-दिमाग बस एक ही बात सोचे कि, क्या अब क्या होगा…तब आपको सिर्फ दो ही चीजें याद आती हैं, एक ऊपर वाला और दूसरा डॉक्टर। यह एहसास मुझे भी हुआ और तब हुआ जब मैं कोरोना की चपेट में आ चुकी थी।
ऐसे में किसी मरीज पर क्या बीतती होगी और वह क्या महसूस करता होगा यह सिर्फ और सिर्फ वही बता सकता है। यह कहना है राजस्थान के सबसे बड़े सवाई मानसिंह अस्पताल की एनिस्थीसिया विभाग की रेजीटेंड डॉक्टर अदिती का। अदिती अब कोरोना को हराकर होम क्वारेंटाइन में है….
अपील : कोरोना संक्रमितों ने कोई पाप तो किया नहीं है, जो लोग बात करना तक छोड़ देते हैं…अपनी सोच बदलिए और मरीजों का संबल बढ़ाइए
सीनियर्स के साथ मैं भी कोविड वार्ड में एक हफ्ते तक लगातार ड्यूटी पर थी। पीपीई किट और अन्य तमाम सतर्कता बरत रही थी। दिमाग के एक कोने में कोरोना का डर तो था लेकिन ऐसा नहीं लग रहा था कि मैं भी इस बीमारी की चपेट में आ सकती हूं। इसी दौरान मेस का एक कर्मचारी कोरोना संक्रमित हो गया। इसके बाद हमारी भी जांच कराई गई।
1 मई को यही कोई रात 12 बज रहे थे। अचानक मैने अपनी रिपोर्ट देखी…रिपोर्ट पॉजिटिव थी। थोड़ी देर के लिए तो हार्ट बीट बढ़ गई कि अब क्या होगा? थोड़ी हिम्मत जुटाई और भागते-भागते एसएमएस पहुंच गई एडमिट होने के लिए। खैर, मुझे एडमिट कर लिया गया। पूरी रात डर और तनाव के कारण एक झपकी तक नहीं आई।
कोई आस-पास घर का भी नहीं थी इसलिए बेचैनी और बढ़ गई। जैसे-तैसे रात कट गई। सुबह-सुबह ही मैंने अजमेर में रह रहे मम्मी-पापा को फोन किया और पूरी घटना के बारे में बताया। मम्मी-पाप जयपुर आना चाहते थे लेकिन ऐसा उनके लिए संभव नहीं था। उन्होंने ढांढ़स बंधाया कि…तू तो खुद मरीजों की सेवा करती है, तुझे कुछ नहीं होगा।
…और हुआ भी यही मैं 15 मई को बिल्कुल ठीक हुई और अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया। अब मैं अजमेर में होम क्वारेटाइन में हूं और सख्ती से गाइड लाइन की पालना कर रही हूं।
मैने महसूस किया है कि कोरोना संक्रमितों को लेकर एक गलत धारणा है। लोग ऐसे व्यवहार करते हैं कि जैसे उसने कोई बहुत बड़ा अपराध कर दिया हो। यहां तक कि दोस्त, रिश्तेदार बात करने से भी घबराते हैं। ऐसा करना छोड़िए।
थैंक्स मेरे सीनियर्स और साथियों का जिन्होंने संकट की इस घड़ी में मेरा साथ दिया। मेरा ख्याल रखा। मेरे इस बीमारी से जीतने के लिए हमेशा प्रेरित करते थे। साथी कहते थे-कोरोना से मरना नहीं है, उसे ही मारना है। अब मुझे उस दिन का इंतजार है जब मैं दोबारा मरीजों की सेवा के लिए एसएमएस जाना शुरू करूं।