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  • यूनिसेफ ने 11 मार्च से 16 दिसम्बर के बीच जन्म लेने वाले बच्चों का जारी किया अनुमान
  • कोरोना संक्रमण की वजह से मां और बच्चे को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है

दैनिक भास्कर

Jul 11, 2020, 03:53 PM IST

यूनिसेफ का कहना है कि इस साल 11 मार्च से 16 दिसम्बर के बीच दुनियाभर में 11 करोड़ 60 लाख बच्चे पैदा होंगे। दूसरे देशों के मुकाबले इस साल सबसे ज्यादा 2.1 करोड़ बच्चे भारत में पैदा होंगे। चीन दूसरे पायदान पर होगा। वहीं लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स की सर्वे रिपोर्ट दुनिया में बेबी बूम की सम्भावना को खारिज करती है।

सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक, कोरोना काल में जनसंख्या में उछाल के बजाए गिरावट होगी। रिपोर्ट की लेखिका फ्रांसेको लुपी ने अमेरिका, यूरोप और कई एशियाई देशों में जन्म दर में 30 से 50 फीसदी तक कमी का अनुमान लगाया है। लुपी का कहना है कि सोशल डिस्टेंसिंग और तमाम पाबंदियों के बीच बेबी बूम की कोई सम्भावना नहीं।

60 फीसदी युवाओं ने फैमिली प्लानिंग टाली

यूरोप में इटली, जर्मनी, फ्रांस, स्पेन और ब्रिटेन में 18 से 34 साल की उम्र के 50 से 60 फीसदी युवाओं ने परिवार आगे बढाने की योजना को एक साल के लिए टाल दिया है।
सर्वे में फ्रांस और जर्मनी में 50 फीसदी युवा दंपतियों ने कहा कि वे परिवार आगे बढ़ाने के बारे में फिलहाल सोचेंगे भी नहीं। सिर्फ 23 फीसदी ने इससे अंतर न पड़ने की बात कही। इटली में 38 फीसदी और स्पेन में 50 फीसदी से ज्यादा युवाओं ने कहा कि उनकी आर्थिक और मानसिक स्थिति अभी ऐसी नहीं है कि वे बच्चे का ख्याल रख पाएंगे।

कोरोनाकाल में मां और नवजात के लिए चुनौती

मां के लिए : दवा, उपकरण और हेल्थ वर्करों की कमी से जूझना होगा
यूनिसेफ की एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर हेनरिटा फोर ने कहा कि नई मांओं और नवजातों को जिंदगी की कठोर सच्चाई का सामना करना पड़ेगा। क्योंकि, कोविड-19 की रोकथाम के लिए दुनियाभर में कर्फ्यू और लॉकडाउन जैसे हालात हैं। ऐसे में जरूरी दवाओं और उपकरणों का अभाव, एएनएम और हेल्थ वर्कर्स की कमी से गर्भवती महिलाओं को जूझना पड़ेगा। संक्रमण के डर की वजह से गर्भवती महिलाएं खुद भी हेल्थ सेंटर्स पर जाने से कतराएं

नवजात के लिए : शिशु मृत्यु दर में इजाफ हो सकता है
यूनिसेफ की ग्लोबल रिपोर्ट में कहा गया है कि कोविड-19 को रोकने के लिए किए गए लॉकडाउन जैसे उपायों की वजह से जीवनरक्षक स्वास्थ्य सेवाओं पर असर पड़ सकता है। इससे नवजात और मां दोनों की जिंदगी खतरे में पड़ सकती है। विकासशील देशों में यह खतरा ज्यादा है क्योंकि, इन देशों में कोरोना महामारी आने से पहले ही शिशु मृत्यु दर ज्यादा है। ऐसे में कोविड-19 की वजह से इसमें इजाफा हो सकता है। 

औसत गर्भावस्था की अवधि के आधार पर आकलन
यूनिसेफ की समीक्षा का आधार संयुक्त राष्ट्र की वर्ल्ड पॉपुलेशन डिवीजन 2019 की रिपोर्ट है। एक औसत गर्भावस्था आमतौर पर पूरे 9 महीने या 40 सप्ताह तक रहती है। ऐसे में बच्चों के पैदा होने का आकलन करने के लिए संस्था ने इसे ही पैमाना बनाया।

हर साल 28 लाख गर्भवती महिलाओं और नवजातों की मौत होती है
यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि कोविड-19 महामारी से पहले भी हर साल दुनियाभर में करीब 28 लाख गर्भवती महिलाओं और नवजातों की मौत होती आई है। हर सेकंड 11 मौतें। ऐसे में संस्था ने हेल्थ वर्कर्स की ट्रेनिंग और दवाइयों के उचित इंतजाम पर जोर देने के लिए कहा है ताकि गर्भावस्था के दौरान महिलाओं और उसके बाद नवजातों की जान बचाई जा सके।

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इस साल की थीम महिलाओं-लड़कियों के अधिकार और स्वास्थ्य पर फोकस 

इस साल वर्ल्ड पॉप्युलेशन की थीम महिलाओं-लड़कियों के अधिकार और स्वास्थ्य पर फोकस है। ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन की रिपोर्ट के अनुसार, लड़कियों की शिक्षा और जन्म दर के बीच गहरा संबंध है, क्योंकि शिक्षा लड़कियों को परिवार नियोजन की समझ देती है। साथ ही शिक्षा उन्हें बाल विवाह व कच्ची उम्र में मां बनने से भी बचाती है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की वर्ल्ड पॉपुलेशन एंड ह्यूमन केपिटल इन ट्वेंटी फर्स्ट सेंचूरी स्टडी के अनुसार, हर लड़की और लड़के को 10वीं तक नियमित शिक्षा मिले तो 2050 में दुनिया की आबादी 150 करोड़ कम के स्तर पर होगी। यूएन के अनुसार 2050 में दुनिया की आबादी 980 करोड़ होगी।

दुनिया का उदाहरण

  • अफ्रीका में महिला शिक्षा की सुविधाएं न्यूनतम हैं, वहां हर महिला औसतन 5.4 बच्चों को जन्म दे रही है। जबकि जिन देशों में लड़कियों को 10वीं तक शिक्षा मिल रही है, वहां हर महिला 2.7 बच्चों को जन्म दे रही है। लड़कियों के लिए जहां कॉलेज तक शिक्षा सुविधाएं हैं, वहां 1 महिला औसतन 2.2 बच्चों को जन्म दे रही है।

देश का उदाहरण

  • यही ट्रेंड भारत में है। सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक प्रति हजार पर सबसे कम जन्मदर केरल में 13.9 है। तमिलनाडु में जन्मदर 14.7 है। ये राज्य बच्चियों की पढ़ाई में भी आगे हैं। 2011 में महिला साक्षरता में सबसे पिछड़े तीन राज्यों राजस्थान (52.7), बिहार (53.3), उत्तर प्रदेश (59.5) थे। राजस्थान में जन्मदर 23.2, बिहार में 25.8 व उत्तर प्रदेश में 24.8 है। 

देश की आबादी का हाल: सबसे ज्यादा युवा बिहार में और सबसे कम केरल में
देश में 57.2 फीसदी आबादी की उम्र 25 साल या उससे अधिक है, चाहें पुरुष हो या महिला, शहरी हो या ग्रामीण। रजिस्ट्रार जनरल व जनगणना आयुक्त कार्यालय ने सैम्पल रजिस्ट्रेशन रिपोर्ट 2018 जारी की है। रिपोर्ट के मुताबिक, देश में कुल 46.9 फीसदी लोग युवा हैं। इनमें 47.4 फीसदी पुरुष और 46.3 फीसदी महिला हैं। राज्यों में सबसे ज्यादा युवा बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में हैं वहीं सबसे कम केरल में हैं।

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देश की प्रजनन दर (फर्टिलिटी रेट) में तेजी से गिरावट हो रही है, लेकिन उम्र लम्बी हो रही है। यानी, लोग लम्बे समय तक जी रहे हैं। कई राज्य ऐसे हैं, जहां फर्टिलिटी रेट बढ़ने से जनसंख्या बढ़ रही है। इस मामले में भी बिहार सबसे ऊपर है, राज्य का फर्टिलिटी रेट 3.2 है। पूरे देश में सर्वाधिक (57.2%) युवा यहां हैं। दूसरे पायदान पर उत्तर प्रदेश है। यहां का फर्टिलिटी रेट 2.9 है और कुल युवा 52.7% हैं। 



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