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- The Next Week Will Be Special For The Worship Of Fathers, The Shraddh Performed Every Day From September 13 To 17 Will Be Of Special Importance.
एक घंटा पहले
- 15 सितंबर को मघा नक्षत्र और त्रयोदशी तिथि का संयोग बनेगा, इस दिन किए गए श्राद्ध से पितरों को मिलती है संतुष्टि
काशी के ज्योतिषाचार्य पं. गणेश मिश्र के मुताबिक खास कारणों में विशेष श्राद्ध तिथि का विधान है। ताकि भ्रम की स्थिति ना रहे। 16 दिन तक चलने वाले श्राद्ध पक्ष में नवमी, द्वादशी और चतुर्दशी तीन महत्वपूर्ण तिथियां मानी गई हैं। इनका विशेष महत्व है। इसी तरह घर का कोई व्यक्ति संन्यासी बन गया है और उसके विषय में ज्ञात नहीं हो तो द्वादशी तिथि को श्राद्ध का प्रावधान है। जिस व्यक्ति की अकाल मृत्यु यानी जल में डूबने, विष के कारण, शस्त्र घात के कारण होती है ऐसे व्यक्तियों का श्राद्ध चतुर्दशी को करना चाहिए।
- पुराणों के अनुसार मृत्यु का कोई खास कारण है तो श्राद्ध पक्ष की नौंवी, बारहवीं, और चौदहवीं तिथि को श्राद्ध किया जा सकता है। ताकि पितरों के लिए श्रद्धा और कृतज्ञता जताई जा सके। वैसे तो जिस तिथि में पूर्वज की मृत्यु होती है उसी तिथि को उसका श्राद्ध किया जाता है लेकिन, खास कारणों में मृत्यु की तिथि नहीं, उसका कारण बड़ा माना गया है। इसके साथ श्राद्ध पक्ष की त्रयोदशी और अमावस्या भी बहुत खास होती है।
एकादशी श्राद्ध: 13 सितंबर
पितृ पक्ष में पड़ने वाली एकादशी बहुत को इंदिरा एकादशी कहते हैं। इस दिन श्राद्ध करने से उन पूर्वजों की आत्मा को मोक्ष मिलता है जो किसी वजह से भटकती हैं। इस दिन व्रत करने से पितर प्रसन्न होते हैं। ये तिथि रविवार को है।
सन्यासी श्राद्ध: 14 सितंबर
घर का कोई व्यक्ति संन्यासी बन गया हो और उसके बारे में कुछ पता नहीं हो तो द्वादशी यानी पितृ पक्ष की बारहवीं तिथि को उसका श्राद्ध करना चाहिए। इस दिन साधु-संतों का भी श्राद्ध किया जाता है। इस बार ये तिथि सोमवार को रहेगी।
मघा श्राद्ध: 15 सितंबर
पितृ पक्ष के दौरान जब मघा नक्षत्र और त्रयोदशी तिथि का संयोग बनता है तब विशेष श्राद्ध किया जाता है। यमराज को मघा नक्षत्र का स्वामी माना जाता है। इसलिए इस दिन पितरों के लिए की गई विशेष पूजा करनी चाहिए। ये तिथि मंगलवार को रहेगी।
चतुर्दशी श्राद्ध: 16 सितंबर
किसी इंसान की अकाल मृत्यु यानी दुर्घटना, जहर, हथियार या पानी में डूबकर हुई हो तो ऐसे लोगों का श्राद्ध पितृपक्ष की चतुर्दशी यानी चौदहवीं तिथि को करना चाहिए। इससे उन पूर्वजों को संतुष्टि मिलती है। ये तिथि बुधवार को है।
अमावस्या श्राद्ध: 17 सितंबर
परिवार के जिन लोगों की मृत्यु तिथि नहीं पता होती है। उनका श्राद्ध सर्व पितृ अमावस्या किया जाना चाहिए। इससे खानदान के भूले-भटके पितरों के प्रति कृतज्ञता जताई जा सके। इससे कोई भी पितर नाराज नहीं रहते। ये पर्व गुरुवार को रहेगा।