गुलाम रसूल बहुत पढ़ा-लिखा नहीं था, बावजूद इसके उसने अंग्रेज साहब की मदद से अपनी पूरी कहानी को ‘सर्वेंट ऑफ साहिब्स’ नाम की किताब में दर्ज किया
गुलाम एक लंबे समय तक मशहूर ब्रिटिश एक्सप्लोरर सर फ्रांसिस यंगहसबैंड के साथ रहे और उनसे कई भाषाएं बोलना सीखे
Table of Contents
दैनिक भास्कर
Jun 17, 2020, 04:03 PM IST
नई दिल्ली. लद्दाख की गलवान घाटी में भारत और चीन की सेनाएं आमने-सामने हैं। करीब 14 हजार फीट की ऊंचाई और माइनस 20 डिग्री तक गिरने वाले तापमान में जवानों का सब्र टूट रहा है। यह जगह अक्साई चीन इलाके में आती है जिस पर चीन बीते 70 साल से नजरें लगाए बैठा है। 1962 से लेकर 1975 तक भारत- चीन के बीच जितने भी संघर्ष हुए उनमें गलवान घाटी केंद्र में रही। अब 45 साल बाद फिर से गलवान घाटी के हालात बेहद चिंताजनक बने हुए हैं।
गलवान घाटी का नाम लद्दाख के रहने वाले चरवाहे गुलाम रसूल गलवान के नाम पर रखा गया था। गुलाम रसूल ने इस पुस्तक के अध्याय “द फाइट ऑफ चाइनीज” में बीसवीं सदी के ब्रिटिश भारत और चीनी साम्राज्य के बीच सीमा के बारे में बताया है।
तस्वीरों में गुलाम रसूल गलवान और नदी-घाटी की खोज की कहानी