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  • दुनियाभर के जंगलों पर हुई अमेरिका के पेसिफिक नॉर्थवेस्ट नेशनल लेबोरेट्री की रिसर्च में इंसानों को चेतावनी दी गई
  • नए जंगल के मुकाबले पुराने जंगल ज्यादा कार्बन डाई ऑक्साइड सोखते हैं और इन्हीं पर सबसे ज्यादा असर दिख रहा है​​​​​​

दैनिक भास्कर

Jun 05, 2020, 01:15 PM IST

इंसानों के जंगलों में दखल के बाद पहले ही पेड़ों की संख्या तेजी से घट रही थी लेकिन एक और नकारात्मक बदलाव दिख रहा है। अब पर्यावरण बदल रहा है। दुनियाभर के जंगलों में पेड़ों की लम्बाई छोटी हो रही है और उम्र घट रही है। जैसे तापमान और कार्बन डाइ ऑक्साइड बढ़ रही है, वैसे-वैसे ये बदलाव बढ़ता रहा है। इसकी शुरुआत एक दशक पहले ही शुरू हो चुकी है। 

यह रिसर्च अमेरिका के पेसिफिक नॉर्थवेस्ट नेशनल लेबोरेट्री ने दुनियाभर के जंगलों पर की है। रिसर्च कहती है कि अब दुनियाभर के जंगल और पर्यावरण बदल रहे हैं। जंगलों में आग, सूखा, तेज हवा के कारण होने वाला डैमेज मिलकर जंगलों की उम्र को घटा रहे हैं और पर्यावरण का संतुलन बिगड़ रहा है। 

पुराने जंगल अधिक कार्बन डाइ ऑक्साइड सोखते
रिसर्च के प्रमुख शोधकर्ता मैकडॉवेल का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के साथ यह बदलाव बढ़ रहा है। नए जंगल के मुकाबले पुराने जंगलों में विभिन्नताएं हैं और ये ज्यादा कार्बन डाई ऑक्साइड सोखते हैं लेकिन इन पर नकारात्मक असर दिख रहा है। आने वाले समय में हम जो पड़े उगा रहे हैं उसके मुकाबले पुराने जंगल काफी हद तक बदल जाएंगे। जलवायु परिवर्तन को रोकने के दो ही बड़े मंत्र है कार्बन को सोखना और जैव-विविधता यानी बायोडाइवर्सिटी। 

इंसान जंगलों को बर्बादी की कगार पर ऐसे ले गए
जंगलों में जो बदलाव दिख रहे हैं वह इंसानों की कारगुजारी का नतीजा हैं। नतीजा है कि दुनियाभर के पुराने जंगल तेजी से खत्म हो रहे हैं। शोधकर्ताओं ने इसे समझने के लिए सैटेलाइट इमेज का इस्तेमाल करके विश्लेषण तो पाया ऐसे पिछले एक दशक हो रहा है। यह पूरे पर्यावरण को बदल रहा है। शोधकर्ताओं ने इसकी दो बड़ी वजह बताई हैं। 
पहला- इंसानों को जंगलों में बढ़ता दखल और दूसरी प्राकृतिक आपदाएं जैसे आग, कीट और पेड़ों में फैलती बीमारियां। तेजी से कटते पेड़ तीन तरह से असर डालते हैं, पहला- यहां लोग बढ़ते हैं, दूसरा- कार्बन की मात्रा बढ़ती है और तीसरा पौधे खत्म होने लगते हैं।

जंगलों का दम घोट रहा है बढ़ता तापमान
शोधकर्ता मैकडॉवेल के मुताबिक, तेजी से बढ़ता तापमान और प्राकृतिक आपदा पेड़ों का दम घोट रही है। पिछले 100 सालों में हमने काफी पुराने जंगल खोए हैं। इनकी जगह पर ऐसे पेड़ उगे हैं जो जंगलों की प्रजाति से मेल नहीं खाते थे। इस दौरान नए जंगल उगे। लेकिन तेजी से कटते पेड़ जानवरों और पेड़ों के बीच स्थितियां बदल रही हैं।

  • एक्सपर्ट ओपिनियन

ये जैसे घटेंगे, इंसान का जीवन मुश्किल होता जाएगा
द इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, मुम्बई के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. उमेश बी काकड़े का कहना है कि औद्योगिकरण, तेजी से बढ़ती जनसंख्या और असंतुलित होते पर्यावरण के कारण जंगलों पर दबाव बढ़ रहा है। हर इंसान को अपनी जरूरतों के लिए जंगलों पर निर्भर होते जा रहे हैं, चाहें जमीन हो या ईधन। पहले पेड़ों की लम्बाई और उनका जीवन ज्यादा था लेकिन पर्यावरण में असंतुलन और प्रदूषण बढ़ने चीजें बदल रही हैं। मिट्‌टी का कटाव होने के कारण पेड़ों की जड़ें कमजोर हो रही हैं और उनका जीवनकाल कम हो रहा है। तापमान, ह्यूमिडिटी, बारिश का चक्र बदल रहा है, प्रदूषण और मिट्‌टी का कटाव ऐसे फैक्टर हैं जो पेड़ों के विकास को बाधित कर रहे हैं। ऐसे में सबसे जरूरी है प्रदूषण को रोकना क्योंकि इसके लिए इंसान ही जिम्मेदार है, वही इसे सुधार सकता है।

पेड़ों और जंगलों को संरक्षित करने की जरूरत है। खाली पड़ी जमीन पर आबादी के मुताबिक अलग-अलग तरह के पेड़ लगाएं। सिर्फ ऑक्सीजन के लिए नहीं बल्कि जानवरों और पक्षियों के लिए ये बेहद जरूरी है। धरती पर ऑक्सीजन और भोजन का यही एकमात्र स्रोत हैं जैसे-जैसे ये खत्म होंगे, इंसान का जीवन मुश्किल होता जाएगा। 

इंसानों के जंगलों और वाइल्डलाइफ में दखल का उदाहरण कोरोनावायरस
मुम्बई की पर्यावरणवि्द और आवाज फाउंडेशन की फाउंडर सुमैरा अब्दुलाली कहती हैं, आज हम इंसान अपने जंगलों को ऐसे मैनेज करते हैं ताकि ज्यादा ज्यादा टिम्बर ले सकें। इसलिए जंगलों को एक खास अवधि में काटा जाता है और फिर पौधारोपण किया जाता है। ऐसे जंगलों का मुख्य उद्देश्य टिंबर पैदा करना होता  और यहां पर पेड़ों को कभी भी उनकी पक्की उम्र तक बढ़ने नहीं दिया जाता और उन्हें पहले ही काट लिया जाता है इसके अलावा इंसानों के कारण जंगलों में फैली आग और जलवायु परिवर्तन का असर पुराने जंगलों पर हो रहा है। इन्हें बचाने की जरूरत है, दुनियाभर के जंगल यह समस्या झेल रहे हैं। 

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पर्यावरणवि्द सुमैरा अब्दुलाली कहती हैं कोरोनावायरस जानवरों से इंसानों में पहुंचने की एक वजह यह भी है कि इंसानों का जंगलों और वाइल्डलाइफ में हस्तक्षेप बढ़ रहा है। जिसका असर दुनियाभर में लॉकडाउन के रूप में दिखा। यह बताता है कि इंसान और कुदरत एक-दूसरे पर निर्भर हैं। इस समय पुराने जंगलों को बचाने और संरक्षित करने की जरूरत है। अगर हमने पौधों की प्रजातियां खो दीं तो बदले हुए पर्यावरण का सीधा असर इंसानों और जानवरों पर दिखेगा। 



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