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एक दिन पहले

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  • जिन परिवारों में समर्पण का भाव नहीं होता, वहां अक्सर वैमनस्यता, अलगाव और बिखराव की स्थिति पैदा हो जाती है

महाभारत में पांडवों का परिवार श्रेष्ठ परिवार था। उस परिवार में 3 बातें हर सदस्य में थी।पहली एक-दूसरे के प्रति जैसा प्रेम, दूसरी समर्पण और तीसरी कर्तव्य की भावना का ज्ञान।ऐसा आज के परिवार में नहीं होता है। परिवार होता क्या है? ऐसे लोगों का समूह जो भौतिक और मानसिक स्तर पर एक-दूसरे से प्रगाढ़ता से जुड़ा हो। जिसके सभी सदस्य अपना फर्ज पूरी ईमानदारी से निभाते हैं और उदारता पूर्वक एक-दूसरे के लिये त्याग करते हैं, परेशानियों में सहयोग करते हैं। कोई भी परिवार संगठित, विकसित और उन्नतिशील तभी हो सकता है, जबकि उसका प्रत्येक सदस्य अपने कर्तव्य को अपना धर्म मानकर पूरी निष्ठा और गहराई से पालन करे।

  • परिवार में होना चाहिए एक-दूसरे के प्रति समर्पण

महाभारत में पांडवों का परिवार देखिए। मां कुंती और पांचों भाई। मां ने पहले अपने कर्तव्य निभाए। अपनी सौतन माद्री की दोनों संतानों नकुल और सहदेव को भी अपने बच्चों जैसा ही प्रेम और परवरिश दी। संस्कार दिए। सभी बेटे भी ऐसे ही हैं। मां के मुंह से निकली हर बात को पूरा करना, बड़े भाई के प्रति आदर, हर भाई को अपने कर्तव्य का भलीभांति ज्ञान था। किसे क्या करना है जिम्मेदारी तय थी। तभी पांडव जहां भी रहे, सुखी रहे। जिन परिवारों में ऐसा समर्पण नहीं होता, वहां अक्सर वैमनस्यता, अलगाव और बिखराव की स्थिति पैदा हो जाती है।

Mahabharat stories In order to keep the family one, 3 things are required to be in every member of the house, five Pandavas kept their family united by these same qualities. | परिवार को एक रखने के लिए 3 चीजें घर के हर सदस्य में होना जरूरी है, पांच पांडवों ने इन्हीं गुणों से अपने परिवार को रखा था एकजुट 1
  • परिवार की खुशहाली के जरूरी हैं ये बातें

परिवार की खुशहाली और समृद्धि तभी संभव है जबकि परिवार का कोई भी सदस्य स्वार्थी, विलासी और दुर्गुणी न हो। यदि परिवार में धर्म-कर्तव्यों के प्रति पूरी आस्था और समर्पण होगा तो वे अच्छी तरह से समझ पाएंगे कि स्वार्थ की बजाय स्नेह-सहयोग का माहौल ही फायदेमंद है। किसी भी परिवार में अलगाव, बिखराव या मन-मुटाव तभी पैदा होता है, जबकि सदस्यों में अपने कर्तव्य की बजाय अधिकार को पाने की अधिक जल्दी होती है।

  • ऐसे बच सकता है परिवार टूटने से

यदि कर्तव्य और फर्ज को गहराई से समझकर इनके बीच संतुलन साध लिया जाए तो कोई भी परिवार टूटने और बिखरने से बच सकता है। यानि जिस परिवार में अधिकारों से पहले कर्तव्यों की फिक्र की जाती है, वहीं पर स्नेह, सहयोग और सद्भावना कायम रह पाती है। जहां पर इस तरह की सुलझी हुई सद्बुद्धि का माहौल होगा वहीं पर सुख-संपत्ति से भरा-पूरा राम परिवार जैसा वातावरण होगा।

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