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- Indian Economy, GDP Prediction FY2020 21| Indian Economy Was On Track In June 2020 After Lock Down But Derailed In July 2020
नई दिल्ली8 मिनट पहलेलेखक: आदित्य सिंह
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- जून की तुलना में जुलाई में घटा जीएसटी कलेक्शन, ईंधन खपत और मैन्युफेक्चरिंग डेटा, छह महीने लग जाएंगे नई नौकरियों के अवसर बढ़ने में
- विशेषज्ञों का कहना है कि आर्थिक हालात में सुधार हो रहा है, लेकिन मार्च की स्थिति में आने में वक्त लगेगा; बैंकों के पास कैश की कमी
अर्थव्यवस्था का विश्लेषण करने वाली तमाम संस्थाएं भारत की अर्थव्यवस्था में गिरावट का अनुमान लगा रही हैं। इसका कारण सिर्फ कोरोनावायरस नहीं है। आर्थिक विश्लेषकों का कहना है कि यह दौर पिछले डेढ़ साल से चल ही रहा था। नई नौकरियों की संख्या में गिरावट और घटती पर्चेसिंग पावर को कोरोनावायरस को काबू करने के लिए लागू किए गए लॉकडाउन ने और बढ़ा दिया है।
इसके बाद भी उम्मीद है कि छह महीने में भारतीय अर्थव्यवस्था पटरी पर आ जाएगी। कारोबारी लेन-देन मार्च 2020 से पहले की स्थिति में पहुंच जाएगा। आंकड़े भी कहते हैं कि जून में अनलॉक 1.0 लागू होने के बाद हालात सुधरे भी थे, लेकिन जुलाई में फिर बिगड़ गए। यह किस हद तक बिगड़े हैं, यह जानने के लिए हमने चार प्रमुख इंडिकेटर्स का अध्ययन किया।
देश की जीडीपी 5% तक गिर सकती है
देश की जीडीपी और नई नौकरियों में सीधा संबंध है। 1% जीडीपी बढ़ने का मतलब है बाजार में साढ़े सात लाख नई नौकरियों का आना। अगर जीडीपी में 4 से 5 प्रतिशत की गिरावट होती है तो नई नौकरियों में गिरावट से इनकार नहीं किया जा सकता। फिलहाल वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ समेत कई संस्थाओं ने भारत की जीडीपी में गिरावट का अनुमान लगाया है। क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डीके जोशी का कहना है कि जीडीपी सुनने-पढ़ने में भारी-भरकम शब्द जरूर लग सकता है लेकिन यह हर एक व्यक्ति से जुड़ा होता है। यह देश के हर व्यक्ति की कमाई और उत्पादन से जुड़ी होती है। यदि जीडीपी के घटने का अनुमान है तो कमाई घटेगी। उत्पादन घटेगा। फैक्ट्रियां कम चलेंगी तो प्रोडक्शन भी प्रभावित होगा। हालांकि, जोशी इस बात को लेकर आश्वस्त हैं कि जिन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा स्लोडाउन आया है, जैसे कि सर्विस सेक्टर, उनमें ही नई नौकरियों के अवसर भी मिलेंगे।
जुलाई में घट गया जीएसटी कलेक्शन
आप यह कह सकते हैं कि जीएसटी कलेक्शन घटने का हम पर क्या असर होगा? ऐसे सवाल स्वाभाविक है। लेकिन, आप सोचिये कि यदि सरकार ने नई सड़कें, स्कूल और अस्पताल बनाना बंद कर दिया या नई सुविधाएं देने पर रोक लगा दी तो क्या होगा? सरकार की कमाई कम होगी तो निश्चित तौर पर उसका असर हमें दी जा रही सुविधाओं पर पड़ेगा। वहीं, इसका एक और पहलू यह भी है कि जीएसटी कलेक्शन तभी बढ़ेगा जब कारोबार अच्छे चल रहे होंगे। बाजार खुलेंगे, सामान बिकेगा और मार्केट में तेजी आएगी। इसलिए जीएसटी कलेक्शन जैसा इंडिकेटर भी हमारी अर्थव्यवस्था की स्थिति को समझने में आपकी मदद कर सकता है।
जुलाई में ईंधन की खपत घटी
पेट्रोल-डीजल की खपत भी आर्थिक गतिविधियों को समझने का एक बड़ा इंडिकेटर है। आप समझ सकते हैं कि डिमांड और सप्लाई कैसी चल रही है। डिमांड होगी तो सप्लाई होगी और इसके लिए ट्रांसपोर्टेशन की जरूरत होगी जो फ्यूल के बिना नहीं हो सकता। एक और महत्वपूर्ण इंडिकेटर है रेलवे से माल ढुलाई। मांग कम है इसलिए माल ढुलाई में भी गिरावट दर्ज हुई है। जून में रेलवे 3.12 मिलियन टन की औसतन रोज ढुलाई कर रही थी, जो जुलाई में 50 हजार टन घट गया।
मैन्युफैक्चरिंग गतिविधियां भी थम गईं
पीएमआई मैन्युफैक्चरिंग इंडेक्स से हमें यह समझ आता है कि देशभर में फैक्ट्रियों में क्या गतिविधियां चल रही हैं। यदि यह इंडेक्स 50 के ऊपर है तो मैन्युफैक्चरिंग के जरिये प्रोडक्शन अच्छा है और उससे कम को तुलनात्मक रूप से अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं माना जाता। जून में पीएमआई 47.2 था जो जुलाई में घटकर 46 रह गया। मैन्युफैक्चरिंग को हम डिमांड और सप्लाई के नियम से भी जोड़ सकते हैं, जहां डिमांड हमारी पर्चेसिंग पावर से जुड़ जाती है।
जानिये विशेषज्ञ क्या कह रहे हैं?
मुंबई स्थित केडिया एडवायजरी के एमडी अजय केडिया का कहना है कि रिटेल लेवल क्रेडिट का सर्कल टूट चुका है। 2018 में ही भारत ने आर्थिक मंदी की ओर चलना शुरू कर दिया था। उस पर कोरोना ने लोकल मार्केट से लिक्विडिटी कमजोर कर दी। कैश की भारी कमी है। इस वजह से उत्पादन भी नहीं बढ़ पा रहा है। 75 प्रतिशत बाजार खुल गए हैं, लेकिन लिक्विडिटी की कमी ही प्रोडक्शन को और कहीं न कहीं डिमांड-सप्लाई को प्रभावित कर रही है। सरकार ने लिक्विडिटी बढ़ाने के लिए प्रयास किए हैं, लेकिन बैंकों को एनपीए बढ़ने का डर है। वे किसी तरह का रिस्क लेने की स्थिति में नहीं हैं।
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