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15 दिन पहले

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  • बुधवार को संकष्टी चतुर्थी का संयोग बनने से और भी खास हो गया है दिन

8 जुलाई को सावन महीने के कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि का व्रत किया जा रहा है। बुधवार होने से इस दिन का महत्व और भी बढ़ गया है। शिव पुराण के अनुसार सबसे पहले भगवान शिव ने सनत्कुमार को सावन महीने में आने वाली संकष्टी चतुर्थी के व्रत की विधि और उसका महत्व बताया था। भगवान शिव ने संकष्टी चतुर्थी व्रत के बारे में बताते हुए कहा था कि सावन में इस व्रत को करने से हर तरह के पाप खत्म हो जाते हैं। भगवान गणेश की विशेष पूजा और तिल के लड्डूओं का भोग लगाकर ब्राह्मण को लड्‌डूओं का दान करने से हर तरह की परेशानियां दूर हो जाती है।

संकष्टी चतुर्थी और शिव पूजा
सावन महीने की संकष्टी चतुर्थी पर गणेशजी की पूजा के बाद भगवान शिव-पार्वती की पूजा भी करने का विधान है। भगवान शिव-पार्वती की पूजा सुगंधित फूल और सौभाग्य सामग्रियों के साथ करनी चाहिए। गणेश पूजा के बारे में भगवान शिव ने सनत्कुमार को बताया कि इस चतुर्थी तिथि पर पूरे दिन बिना कुछ खाए पूरे दिन व्रत रखें और शाम को पूजा के बाद ही भोजन करना चाहिए। सुबह जल्दी उठकर काले तिल से स्नान करें। सोने, चांदी, तांबा या मिट्‌टी की गणेश जी की मूर्ति बनवाएं। इसके बाद भगवान गणेश की पूजा करें। फिर गणेश जी को तिल और घी से बने लड्‌डूओं का भोग लगाएं। इसके बाद ब्राह्मणों को लड्‌डू दान करें। इस संकष्टी चतुर्थी व्रत में भगवान शिव की पूजा भी की जाती है। 

संकष्टी चतुर्थी का महत्व
काशी के ज्योतिषाचार्य और धर्मग्रंथों के जानकार पं.गणेश मिश्र ने बताया कि संकष्टी चतुर्थी का मतलब होता है संकट को हरने वाली चतुर्थी। संकष्टी संस्कृत भाषा से लिया गया शब्द है, जिसका अर्थ है कठिन समय से मुक्ति पाना। इस दिन भक्त अपने दुखों से छुटकारा पाने के लिए गणपति जी की अराधना करते हैं। गणेश पुराण के अनुसार चतुर्थी के दिन गौरी पुत्र गणेश की पूजा करना फलदायी होता है। इस दिन उपवास करने का और भी महत्व होता है।
भगवान गणेश को समर्पित इस व्रत में श्रद्धालु अपने जीवन की कठिनाइयों और बुरे समय से मुक्ति पाने के लिए उनकी पूजा-अर्चना और उपवास करते हैं। कई जगहों पर इसे संकट हारा कहते हैं तो कहीं इसे संकट चौथ भी कहा जाता है। इस दिन भगवान गणेश का सच्चे मन से ध्यान करने से व्यक्ति की सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं और लाभ प्राप्ति होती है।

पूजा की विधि

  1. इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और साफ कपड़े पहनें।
  2. रविवार होने से इस दिन लाल रंग के कपड़े पहनना भी शुभ माना जाता है।
  3. ग्रंथों में बताया है कि व्रत और पर्व पर उस दिन के हिसाब से कपड़े पहनने से व्रत सफल होता है।
  4. स्नान के बाद गणपति जी की पूजा की शुरुआत करें।
  5. गणपति जी की मूर्ति को फूलों से अच्छी तरह से सजा लें।
  6. पूजा में तिल, गुड़, लड्डू, फूल, तांबे के कलश में पानी, धूप, चंदन, प्रसाद के तौर पर केला या नारियल रखें।
  7. संकष्टी को भगवान गणपति को तिल के लड्डू और मोदक का भोग लगाएं।
  8. शाम को चंद्रमा निकलने से पहले गणपति जी की पूजा करें और संकष्टी व्रत कथा का पाठ करें।

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