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4 घंटे पहले
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- करीब साढ़े चार लाख करोड़ रुपए के कर्ज में दबी हैं मोबाइल कंपनियां
- वोडाफोन-आइडिया मैनेजिंग बोर्ड फंड जुटाने के उपायों पर चर्चा करेगा
सुप्रीम कोर्ट ने एजीआर के मुद्दे पर टेलीकॉम कंपनियों को बकाया राशि चुकाने के लिए 10 साल दिए हैं। सरकार तो 20 साल भी देने को तैयार थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का रुख देखते हुए कंपनियों ने 15 साल मांगे थे। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने न सरकार की सुनी और न ही कंपनियों की और 10 साल में बकाया राशि का भुगतान करने का आदेश दे दिया। भले ही एजीआर एक जटिल मुद्दा है, आगे चलकर इसका खामिजाया हम ग्राहकों को ही भुगतना पड़ेगा। आइए जानते हैं कैसे-
सबसे पहले, यह एजीआर क्या है?
- एजीआर यानी एडजस्टेड ग्रॉस रेवेन्यू। यह सरकार और टेलीकॉम कंपनियों के बीच का फी-शेयरिंग मॉडल है। 1999 में इसे फिक्स लाइसेंस फी मॉडल से रेवेन्यू शेयरिंग फी मॉडल बनाया था। टेलीकॉम कंपनियों को अपनी कुल कमाई का एक हिस्सा सरकार के साथ शेयर करना होता है।
विवाद क्या था, जो सुप्रीम कोर्ट में मुद्दा गया?
- एजीआर की परिभाषा पर विवाद था। इसी का हल निकालने मसला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था। सरकार चाहती थी कि एजीआर में टेलीकॉम कंपनियों की सभी रेवेन्यू शामिल होगी, वहीं टेलीकॉम ऑपरेटर सिर्फ कोर सर्विसेस से मिलने वाली रेवेन्यू का हिस्सा देना चाहते थे।
- 24 अक्टूबर 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने तय किया कि एजीआर की परिभाषा वही होगी, जो सरकार कह रही है। यानी पूरी रेवेन्यू उसमें शामिल हो गई।
किस कंपनी पर कितना बकाया है?
- सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार टेलीकॉम कंपनियों पर 1.69 लाख करोड़ रुपए की वसूली निकली थी। इसमें भी 26 हजार करोड़ रुपए दूरसंचार विभाग को मिल गए हैं। मार्च 2020 में एयरटेल पर करीब 26 हजार करोड़ रुपए बकाया है।
- वोडाफोन-आइडिया पर 55 हजार करोड़ और टाटा टेलीसर्विसेस पर करीब 13 हजार करोड़ रुपए बकाया है। जियो पर 195 करोड़ रुपए वसूली निकली थी, अब कुछ बकाया नहीं है।
कहां से पैसा लाएंगी टेलीकॉम कंपनियां?
- क्रेडिट रेटिंग एजेंसी इकरा का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने पर टेलीकॉम कंपनियों को 31 मार्च 2021 तक नौ हजार करोड़ रुपए का भुगतान करना होगा। उसके बाद फरवरी 2031 तक हर साल 12 हजार करोड़ रुपए चुकाने होंगे।
- 31 मार्च 2019 को इन कंपनियों पर 5 लाख करोड़ रुपए का कर्ज था, जो मार्च 2020 तक घटकर 4.4 लाख करोड़ रुपए रह गया है। लेकिन यह कर्ज अब और कम नहीं होने वाला, क्योंकि एजीआर भुगतान करने में कंपनियों को अतिरिक्त फंड जुटाना होगा।
- एयरटेल ने पहले ही एजीआर भुगतान का प्लान बना लिया है। लेकिन, वोडाफोन-आइडिया सबसे ज्यादा दिक्कत में है। उन पर सबसे ज्यादा कर्ज है और एजीआर का भुगतान भी उन्हें ही ज्यादा करना है। उसने फंड्स जुटाने के लिए बोर्ड की मीटिंग बुलाई है।
Vodafone – Idea.
Post AGR Ruling and end of the uncertainties – the Board Meeting scheduled on 4th Sept to raise funds. This could be a game changer for idea-Vodafone. If they can raise fresh funds then it’s a big positive for Vodafone-Idea.
Contd..read…— Amit Mehta (@AmitMeh03313519) September 2, 2020
इससे हमारी जेब पर क्या असर पड़ेगा?
- यह समझ लीजिए कि देर-सवेर हमारी ही जेब पर असर पड़ना है। अभी भारत में प्रति यूजर औसत राजस्व यानी एआरपीयू दुनिया में सबसे कम 80-90 रुपए है। यदि वोडाफोन-आइडिया को अपनी वित्तीय स्थिति को मजबूत करना है तो उसे एआरपीयू 120 रुपए तक लेकर जाना होगा। यह आसान नहीं है। पिछले साल दिसंबर में जियो समेत सभी टेलीकॉम कंपनियों ने दरें बढ़ाई थीं। अब जल्दी ही टेलीकॉम कंपनियां दोबारा ऐसा कर सकती हैं।
- एनालिस्ट यह भी कह रहे हैं कि यदि वोडाफोन-आइडिया की स्थिति और खराब हुई तो यह भारतीय बाजार के लिए अच्छा नहीं होगा। उसके बंद होने के बाद सिर्फ दो ही निजी कंपनियां- जियो और एयरटेल ही रह जाएंगी, जो कंज्यूमर के लिए बहुत अच्छा नहीं होगा।
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