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  • भारत-चीन सेना के बीच गलवान घाटी में हिंसक झड़प से पहले 1975 में अरुणाचल के तवांग में विवाद हुआ था, तब 4 सैनिक शहीद हुए थे
  • 1967 में सिक्किम बॉर्डर के पास दोनों सेनाएं आमने-सामने आई थीं, तब भारत के 80 सैनिक शहीद हुए थे, चीन के 400 सैनिक मारे गए थे
  • 1962 की जंग में भारत के 1383 सैनिक शहीद हुए थे, 1696 लापता और 3968 सैनिक बंदी बनाए गए थे, चीन के 722 सैनिक मारे गए थे

दैनिक भास्कर

Jun 17, 2020, 10:49 PM IST

भारत और चीन के बीच विवाद का इतिहास जमे हुए पानी की तरह है, जिस पर बस उम्मीद फिसलती है, नतीजे नहीं। चीन ने 58 साल में चौथी बार भारत के साथ बड़ा विश्वासघात किया है। वजह- फिर वही सीमा विवाद, जो 4056 किमी लंबी है और यह हिमालय रेंज में पश्चिम से पूरब की ओर जाती है। दुनिया में सबसे अधिक ऊंचाई पर स्थित है। जहां सबसे मुश्किल हालातों में सैनिक तैनात रहते हैं। जहां कई जगहों पर सालभर तापमन शून्य से नीचे रहता है।

यह दुनिया की ऐसी सबसे बड़ी सीमा भी मानी जाती है, जिसकी पूरी तरह से मैपिंग नहीं हो सकी है। भारत मैकमोहन लाइन को वास्तविक सीमा मानता है, जबकि चीन इसे सीमा नहीं मानता। इसी लाइन को लेकर 1962 में भारत और चीन के बीच जंग भी हुई थी। क्योंकि चीन ने लद्दाख, अरुणाचल प्रदेश समेत कई जगहों पर भारतीय जमीन पर कब्जा कर लिया था। हालांकि चीन का यह कब्जा 58 साल बाद आज भी कायम है। जहां तक चीन का कब्जा है, वहां तक की सीमा लाइन ऑफ ऐक्चुअल कंट्रोल(एलएसी) या वास्तविक नियंत्रण रेखा के नाम से जाना जाता है।

गलवान की स्थिति क्या है?

1962 में भी चीन ने यहां गोरखा पोस्ट पर हमला किया था

भारत के 20 सैनिक जिस इलाके में शहीद हुए हैं, वह इलाका लद्दाख में है। नाम- गलवान घाटी है। गलवान घाटी अक्साई चिन क्षेत्र में आता है। इसके पश्चिम इलाके पर 1956 से चीन अपने कब्जे का दावा करता आ रहा है।

1960 में अचानक गलवान नदी के पश्चिमी इलाके, आसपास की पहाड़ियों और श्योक नदी घाटी पर चीन अपना दावा करने लगा। लेकिन भारत लगातार कहता रहा है कि अक्साई चिन उसका इलाका है। इसके बाद ही 1962 में भारत-चीन के बीच युद्ध हुआ। तब भी चीन ने यहां गोरखा पोस्ट पर हमला किया था। 

दरअसल, चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने इस गलवान पोस्ट पर भारी गोलीबारी और बमबारी के लिए एक बटालियन को भेजा था। इस दौरान यहां 33 भारतीय मारे गए थे, कई कंपनी कमांडर और अन्य लोगों को चीनी सेना ने बंदी बना लिया। इसके बाद से चीन ने अक्साई-चिन पर अपने दावों वाले पूरे क्षेत्र पर कब्जा कर लिया।

मौजूद विवाद के पीछे की दो बड़ी वजहें क्या हैं?

  • आर्थिक वजह

दुनिया की सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं 5 महीनों से कोरोनावायरस के बाद से मंदी के दौर से गुजर रही हैं। चीन, अमेरिका, भारत, यूरोपीय देशों की जीडीपी गिरी है। एक्सपर्ट्स की इस दौर की तुलना 1930 के ‘द ग्रेट डिप्रेशन’ से भी कर रहे हैं। इस सब के बीच 17 अप्रैल को भारत सरकार ने एक चौंकाने वाला फैसला लिया। सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी एफडीआई के नियमों को पड़ोसियों के लिए और सख्त कर दिया। इसका सबसे सबसे ज्यादा चीन पर असर हुआ है।

  • कोरोनावायरस

हाल ही में 194 सदस्य देशों वाली वर्ल्ड हेल्थ असेंबली में एक प्रस्ताव पेश किया गया कि कोरोना मामले की जांच होनी चाहिए। दुनिया भर में नुकसान पहुंचाने वाला कोरोनावायरस कहां से शुरू हुआ। ये असेंबली विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की प्रमुख प्रमुख विंग है। भारत ने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया था।

भारत-चीन के बीच 1962 में जंग की वजह क्या थी?

  • चीन ने 20 अक्टूबर 1962 को भारत हमला बोल दिया था। बहाना- विवादित हिमालय सीमा ही थी। लेकिन, मुख्य वजह कुछ और मुद्दे भी थे, जिनमें सबसे प्रमुख 1959 में तिब्बती विद्रोह के बाद दलाई लामा को शरण देना था। 
  • चीन ने लद्दाख के चुशूल में रेजांग-ला और अरुणाचल के तवांग में भारतीय जमीनों पर अवैध कब्जा कर लिया था। इसके साथ ही चीन ने भारत पर चार मोर्चों पर एक साथ हमला किया। यह मोर्चे- लद्दाख, हिमाचल, उत्तराखंड और अरुणाचल थे।
  • इस जंग में चीन को जीत मिली थी। हालांकि, तब भारत युद्ध के लिए तैयार ही नहीं था। चीन ने एक महीने बाद 20 नवम्बर 1962 को युद्ध विराम की घोषणा कर दी।

एलएसी पर कितने साल बाद सैनिक शहीद हुए? 

  • दोनों देशों की सेनाएं पिछले महीने की शुरुआत से ही लद्दाख में आमने-सामने हैं। पिछले महीने दोनों देशों के सैनिकों के बीच पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग और सिक्किम के नाकुला में हाथापाई हुई थी।
  • इससे पहले भारत-चीन सीमा पर 1975 में यानी 45 साल पहले किसी सैनिक की एलएसी पर जान गई थी। तब भारतीय सेना के गश्ती दल पर अरुणाचल प्रदेश में चीनी सेना ने हमला किया था। 

1962 के बाद दोनों देशों में कौन से बड़े विवाद हुए?

  • 1967- नाथु ला दर्रे के पास टकराव हुआ

1967 का टकराव तब शुरू हुआ, जब भारत ने नाथु ला से सेबू ला तक तार लगाकर बॉर्डर की मैपिंग कर डाली। 14,200 फीट पर स्थित नाथु ला दर्रा तिब्बत-सिक्किम सीमा पर है, जिससे होकर पुराना गैंगटोक-यातुंग-ल्हासा सड़क गुजरती है। 
1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान चीन ने भारत को नाथु ला और जेलेप ला दर्रे खाली करने को कहा। भारत ने जेलेप ला तो खाली कर दिया, लेकिन नाथु ला दर्रे पर स्थिति पहले जैसी ही रही। इसके बाद से ही नाथु ला विवाद का केंद्र बन गया।
भारतीय सीमा पर चीन ने आपत्ति की और फिर सेनाओं के बीच हाथापाई व टकराव की नौबत आ गई। कुछ दिन बाद चीन ने मशीन गन से भारतीय सैनिकों पर हमला किया और भारत ने इसका जवाब दिया। कई दिनों तक ये लड़ाई चलती रही और भारत ने अपने जवानों की पोजिशन बचाकर रखी।
चीनी सेना ने बीस दिन बाद फिर से भारतीय इलाके में आगे बढ़ने की कोशिश की। अक्टूबर 1967 में सिक्किम तिब्बत बॉर्डर के चो ला के पास भारत ने चीन को करारा जवाब दिया। उस समय भारत के 80 सैनिक शहीद हुए थे, जबकि चीन के 300 से 400 सैनिक मारे गए थे।

  • 1975- चीन ने अरुणाचल के तुलुंग में हमला किया

1967 की शिकस्त चीन कभी हजम नहीं कर पाया और लगातार सीमा पर टेंशन बढ़ाने की कोशिश करता रहा। ऐसा ही एक मौका 1975 में आया। अरुणाचल प्रदेश के तुलुंग ला में असम राइफल्स के जवानों की पेट्रोलिंग टीम पर अटैक किया गया।

इस हमले में चार भारतीय जवान शहीद हो गए। भारत ने कहा कि चीन ने एलएसी पर भारतीय सेना पर हमला किया। लेकिन चीन ने भारत के दावे को नकार दिया।

  • 1987- तवांग में दोनों देशों के बीच टकराव हुआ

1987 में भी भारत-चीन के बीच टकराव देखने को मिला, ये टकराव तवांग के उत्तर में समदोरांग चू इलाके में हुआ। भारतीय फौज नामका चू के दक्षिण में ठहरी थीं, लेकिन एक आईबी टीम समदोरांग चू में पहुंच गई, ये जगह नयामजंग चू के दूसरे किनारे पर है। समदोरंग चू और नामका चू दोनों नाले नयामजंग चू नदी में गिरते हैं। 
1985 में भारतीय फौज पूरी गर्मी में यहां डटी रही, लेकिन 1986 की गर्मियों में पहुंची तो यहां चीनी फौजें मौजूद थीं। समदोरांग चू के भारतीय इलाके में चीन अपने तंबू गाड़ चुका था, भारत ने चीन को अपने सीमा में लौट जाने के लिए कहा, लेकिन चीन मानने को तैयार नहीं था।
भारतीय सेना ने ऑपरेशन फाल्कन चलाया और जवानों को विवादित जगह एयरलैंड किया गया। जवानों ने हाथुंग ला पहाड़ी पर पोजीशन संभाली, जहां से समदोई चू के साथ ही तीन और पहाड़ी इलाकों पर नजर रखी जा सकती थी। लद्दाख से लेकर सिक्किम तक भारतीय सेना तैनात हो गई। हालात काबू में आ गए और जल्द ही दोनों देशों के बीच बातचीत के जरिए मामला शांत हो गया। हालांकि, 1987 में हिंसा नहीं हुई, न ही किसी की जान गई। 

  • 2017- डोकलाम में 75 दिन तक सेनाएं आमने-सामने डटी रहीं

डोकलाम की स्थिति भारत, भूटान और चीन के ट्राई-जंक्शन जैसी है। डोकलाम एक विवादित पहाड़ी इलाका है, जिस पर चीन और भूटान दोनों ही अपना दावा जताते हैं। डोकलाम पर भूटान के दावे का भारत समर्थन करता है।

जून, 2017 में जब चीन ने यहां सड़क निर्माण का काम शुरू किया तो भारतीय सैनिकों ने उसे रोक दिया था। यहीं से दोनों पक्षों के बीच डोकलाम को लेकर विवाद शुरू हुआ था भारत की दलील थी कि चीन जिस सड़का का निर्माण करना चाहता है, उससे सुरक्षा समीकरण बदल सकते हैं।

चीनी सैनिक डोकलाम का इस्तेमाल भारत के सिलिगुड़ी कॉरिडोर पर कब्जे के लिए कर सकते हैं। दोनों देशों के सीमाएं 75 दिन से ज्यादा वक्त तक आमने-सामने डटी रहीं, लेकिन कोई हिंसा नहीं हुई थी।

चीन ने 27 साल बाद कौन सा समझौता तोड़ा है?

1993 में भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर शांति और स्थिरिता को बनाए रखने के लिए समझौता हुआ था। इस फॉर्मल समझौते पर भारत के तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री आरएल भाटिया और चीन उप विदेश मंत्री तांग जिसुयान ने हस्ताक्षर किए थे। इसमें 5 प्रिंसिपल्स शामिल किए गए थे।

3 दशक में भारत-चीन के बीच बड़े कूटनीतिक कदम कौन से रहे?

  • 1993 के बाद से दोनों देशों के बीच कई द्विपक्षीय समझौते और प्रोटोकॉल को लेकर बात शुरू हुई, ताकि सीमा पर शांति बनी रहे। चीन के साथ 90 के दशक में रिश्तों की बुनियाद 1988 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के चीन दौरे से रखी गई। 
  • 1993 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसमिम्हा राव चीन दौर पर गए थे और इसी दौरान उन्होंने चीनी प्रीमियर ली पेंग के साथ मेंटनेंस ऑफ पीस एंड ट्रैंक्विलिटी समझौते पर हस्ताक्षर किया था। यह समझौता एलएसी पर शांति बहाल रखने के लिए था।
  • चीनी राष्ट्रपति जियांग जेमिन 1996 में भारत के दौरे पर आए एलएसी को लेकर एक और समझौता हुआ। तब तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किया था। 
  • 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने सीमा विवाद को लेकर स्पेशल रिप्रजेंटेटिव स्तर का मेकेनिजम तैयार किया। 
  • मनमोहन सिंह ने 2005, 2012 और 2013 में चीन के साथ सीमा विवाद को लेकर बातचीत बढ़ाने पर तीन समझौते किए थे। तब वर्तमान विदेश मंत्री एस जयशंकर चीन में भारत के राजदूत हुआ करते थे। 
  • मोदी ने पीएम बनने के बाद जिनपिंग को अहमदाबाद बुलाया। फिर 2018 में वुहान में जिनपिंग के साथ इन्फॉर्मल समिट की शुरुआत की। इसी सिलसिले में 2019 में दोनों नेताओं की महाबलिपुरम में मुलाकात हुई। 

मोदी-जिनपिंग के बीच कूटनीति कदम?

पांच बार चीन गए, 6 साल में जिनपिंग से 18 बार मिले

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में सत्ता में आने के बाद चीन के साथ संबंधों की शुरुआत गर्मजोशी से की थी। इसके बाद चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मोदी की 18 बार मुलाकात हो चुकी है। इनमें वन-टू-वन मीटिंग के अलावा दूसरे देशों में दोनों नेताओं के बीच अलग से हुई मुलाकातें भी शामिल हैं। मोदी पांच बार चीन के दौरे पर गए हैं। पिछले 70 सालों में किसी भी एक प्रधानमंत्री का चीन का यह सबसे ज्यादा बार चीन दौरा है।

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