Strange IndiaStrange India


  • मिथुन संक्रांति से शुरू होकर 4 दिनों तक चलता है रज पर्व, इस दौरान की जाती है धरती माता की पूजा

दैनिक भास्कर

Jun 13, 2020, 08:16 PM IST

15 जून को सूर्य मिथुन राशि में आ जाएगा। इस दिन मिथुन संक्रांति पर्व मनाया जाता है। ओडिशा में ये पर्व रज संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। ये त्योहार 4 दिनों तक मनाया जाता है। इस कृषि पर्व के साथ ही लोग पहली बारीश का स्वागत भी करते हैं। जिसमें भू देवी यानी धरती माता की विशेष पूजा की जाती है। 4 दिनों के इस त्योहार में महिलाएं और कुंवारी लड़कियां हिस्सा लेती हैं। इस त्योहार के दौरान अच्छी फसल और अच्छे वर की कामना के साथ कई तरह से धरती माता की पूजा की जाती है। 

संक्रांति के 4 दिन पहले शुरू हो जाता है पर्व
यह संक्रांति इसलिए भी महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि इसके बाद से ही वर्षा ऋतु शुरू हो जाती है। कुछ लोग इसे रज संक्रांति के नाम से भी जानते हैं। उड़ीसा में इस दिन को त्योहार की तरह मनाया जाता है जिसे राजा परबा कहा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस पर्व के जरिए पहली बारिश का स्वागत किया जाता है। इस दिन लोग राजा गीत भी गाते हैं जो कि इस राज्य का लोक संगीत है। मिथुन संक्रांति पर भगवान सूर्य की पूजा की जाती है। यह पर्व चार दिन पहले ही शुरू हो जाता है। इस पर्व में अविवाहित कन्याएं बढ़-चढ़कर हिस्सा लेती हैं। माना जाता है कि वे अच्छे वर की कामना से यह पर्व मनाती हैं।

इस तरह मनाया जाता है त्योहार
चार दिन तक चलने वाले इस पर्व में पहले दिन को पहिली राजा, दूसरे दिन को मिथुन संक्रांति या राजा, तीसरे दिन को भू दाहा या बासी राजा और चौथे दिन को वसुमती स्नान कहा जाता है। माना जाता है जैसे महिलाओं को हर महीने मासिक धर्म होता है, जो उनके शरीर के विकास का प्रतिक है वैसे ही ये 3 दिन भू देवि यानी धरती मां के मासिक धर्म वाले होते हैं जो कि पृथ्वी के विकास का प्रतिक है। वहीं चौथा दिन धरती के स्नान का होता है जिसे वसुमती गढ़ुआ कहते हैं। इन दिनों में  पीसने वाले पत्थर जिसे सिल बट्टा कहा जाता है। उसका उपयोग नही किया जाता। क्योंकि उसे भू देवी का रूप माना जाता है।

  • पर्व के पहले दिन सुबह जल्दी उठकर महिलाएं नहाती हैं। बाकी के 2 दिनों तक स्नान नहीं किया जाता है। फिर चौथे दिन पवित्र स्नान कर के भू देवि की पूजा और कई तरह की चीजें दान की जाती है। चंदन, सिंदूर और फूल से भू देवि की पूजा की जाती है। एवं कई तरह के फल चढ़ाए जाते हैं। इसके बाद उनको दान कर दिया जाता है। इस दिन कपड़ों का भी दान किया जाता है। इस पर्व के दौरान धरती पर किसी भी तरह की खुदाई नहीं होती। बोवाई या जुताई भी नहीं की जाती।



Source link

By AUTHOR

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *