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10 घंटे पहले

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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को महाराष्ट्र स्टेट रिजर्वेशन फॉर सोशली एंड एजुकेशनली बैकवर्ड क्लासेस (एसईबीसी) एक्ट को चुनौती देने वाली याचिकाओं को बड़ी बेंच को सौंप दिया है। इस कानून के तहत महाराष्ट्र में मराठा समाज को शिक्षा और रोजगार में आरक्षण दिया गया था। साथ ही, कोर्ट ने मराठा समाज को नौकरियों और शैक्षणिक संस्थाओं में आरक्षण देने के कानून पर अंतरिम रोक भी लगा दी है। अब यह मामला चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एसए बोबड़े के पास जाएगा और वे बड़ी संवैधानिक बेंच बना सकते हैं।

महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण का मसला क्या है?

  • महाराष्ट्र में एक दशक से मांग हो रही थी कि मराठा को आरक्षण मिले। 2018 में इसके लिए राज्य सरकार ने कानून बनाया और मराठा समाज को नौकरियों और शिक्षा में 16% आरक्षण दे दिया।
  • जून 2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसे कम करते हुए शिक्षा में 12% और नौकरियों में 13% आरक्षण फिक्स किया। हाईकोर्ट ने कहा कि अपवाद के तौर पर राज्य में सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित 50% आरक्षण की सीमा पार की जा सकती है।
  • जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में गया तो इंदिरा साहनी केस या मंडल कमीशन केस का हवाला देते हुए तीन जजों की बैंच ने इस पर रोक लगा दी। साथ ही कहा कि इस मामले में बड़ी बैंच बनाए जाने की आवश्यकता है।

क्या है इंदिरा साहनी केस, जिससे तय होता है कोटा?

  • 1991 में पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने आर्थिक आधार पर सामान्य श्रेणी के लिए 10% आरक्षण देने का आदेश जारी किया था। इस पर इंदिरा साहनी ने उसे चुनौती दी थी।
  • इस केस में नौ जजों की बैंच ने कहा था कि आरक्षित सीटों, स्थानों की संख्या कुल उपलब्ध स्थानों के 50% से अधिक नहीं होना चाहिए। संविधान में आर्थिक आधार पर आरक्षण नहीं दिया है।
  • तब से यह कानून ही बन गया। राजस्थान में गुर्जर, हरियाणा में जाट, महाराष्ट्र में मराठा, गुजरात में पटेल जब भी आरक्षण मांगते तो सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला आड़े आ जाता है।

…तो कैसे बढ़ सकता है आरक्षण 50% से ज्यादा?

  • मराठा आरक्षण के मसले पर जब सुनवाई चल रही थी तो मुकुल रोहतगी, कपिल सिब्बल और अन्य वकीलों ने दलील दी कि 1992 से अब तक के हालात में काफी कुछ बदलाव हो गया है। ऐसे में राज्यों को यह तय करने का अधिकार देना चाहिए।
  • दलील दी गई कि नरेंद्र मोदी सरकार ने जब 2019 में आर्थिक आधार पर 10% आरक्षण दिया, तब संविधान में संशोधन किया गया। इससे इंदिरा साहनी केस का फैसला आड़े नहीं आया। इससे 28 राज्यों में कुल आरक्षण की सीमा 50% से ऊपर निकल गई है। ऐसे में इंदिरा साहनी केस में सुनाए फैसले की समीक्षा होनी चाहिए।
  • चूंकि, इंदिरा साहनी केस में 9 जजों की बैंच ने फैसला सुनाया था। यदि उस फैसले को पलटना है या उसका रिव्यू करना है तो नई बैंच में नौ से ज्यादा जज होने चाहिए। इसी वजह से 11 जजों की संवैधानिक बैंच बनाने की मांग हो रही है।

तो क्या किसी राज्य में 50% से ज्यादा आरक्षण नहीं है?

  • ऐसा नहीं है। केंद्र ने संविधान में संशोधन कर आर्थिक आधार पर आरक्षण दिया। उससे पहले से ही तमिलनाडु में सरकारी नौकरियों और उच्च शिक्षा में 69% आरक्षण दिया था। सुप्रीम कोर्ट में जब मामला गया तो तमिलनाडु ने कहा था कि राज्य की 87% आबादी पिछड़े तबकों से है।
  • हरियाणा विधानसभा में जाटों के साथ-साथ नौ अन्य समुदायों को 10% आरक्षण दिया गया था। इससे राज्य में कुल आरक्षण 67% हो गया था। सुप्रीम कोर्ट के मराठा आरक्षण रद्द करने से पहले तक महाराष्ट्र 65% के साथ सूची में तीसरे नंबर पर था।
  • तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और राजस्थान में 62, 55 और 54 प्रतिशत आरक्षण है। इस तरह सात राज्यों में 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण आर्थिक आधार पर 10% आरक्षण देने के पहले से लागू था। वहीं, 10 राज्यों में 30 से 50% तक आरक्षण लागू था।

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