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  • विदेशों में पंजाबियों का हाल, छात्रों की मुश्किलें भी बढ़ीं
  • होटल, रेस्टोरेंट और टैक्सी जैसे काम अभी 50 से 60% ही शुरू हो पाए हैं

दैनिक भास्कर

Jun 20, 2020, 05:44 AM IST

लंदन. कोराेना काल में इंग्लैंड में रहने और कमाने वाले पंजाबियों की स्थिति खराब होती जा रही है। खासकर जो अवैध रूप से पहुंचे हैं। कोरोना के बाद सबकुछ बदल गया है। पीएम बोरिस जॉनसन ने पहले कहा ऑल इज वेल…पर जैसे-जैसे मौतें बढ़ीं, दिक्कतें बढ़ती गईं।

ब्रिटेन ने भारत को बताया कि आपके एक लाख से ज्यादा लोग अवैध तरीके से यहां रह रहे हैं। इनमें 60% पंजाबी हैं। सबसे ज्यादा मुसीबत इन्हीं को है। पहले यहां प्रति घंटा 8.21 पाउंड न्यूनतम सैलरी यानी 1.62 लाख रुपए महीना तक थी। सरकार ने टैक्स पेयर्स को कुल सैलरी का 80% देकर मदद की।

इंग्लैंड में जन्मे कुलबीर सिंह ने भास्कर को बताया कि अवैध पंजाबी गुरुद्वारों के सहारे हैं। स्टूडेंट्स तो न्यूनतम 250 पाउंड (24000 रु.) किराया भी नहीं दे पा रहे। वे न तो घर जा सकते हैं और न ही यहां सही तरीके से रह सकते हैं।

ड्राइवरों को बचाने का नया तरीका
कई ड्राइवरों की मौत के बाद बिना शुल्क बस सर्विस शुरू हुई। मास्क, पिछले दरवाजे से उतरना अनिवार्य किया गया। विशाल सरोया ने बताया कि कोरोना से ट्रांसपोर्ट फॉर लंदन के 26 कर्मचारियों की मौत हो गई।

कॉलेज, यूनिवर्सिटी बंद, अब सिर्फ घर वापसी ही रास्ता

इंग्लैंड में 10 साल से रह रहे फिरोजपुर के राकेश कुमार ने बताया कि पंजाब के स्टूडेंट्स के सामने बड़ी दिक्कत किराए की है। लोकेशन के हिसाब से 250 से लेकर 350 पाउंड तक के किराये के कमरों में स्टूडेंट्स रह रहे हैं। यूनिवर्सिटी बंद होने पर स्टडी शेड्यूल आगे खिसक गया है। कई स्टूडेंट्स लंगर खाकर गुजारा कर रहे हैं। खालसा एड और निष्काम सेवा संस्थाओं ने मदद पहुंचाई।

कामगारों के लिए असली संकट जुलाई से: नेशनल इंडियन स्टूडेंट्स एंड एलुमनी यूनियन की प्रमुख सनम अरोड़ा के अनुसार कुछ छात्रों ने जल्द वापसी न होने पर जान देने की बात कह दी। इनकी काउंसलिंग की गई। कामगारों के लिए असली संकट जुलाई से होगा। सरकार का कहना है कि इंप्लायर जुलाई से अक्टूबर तक फर्लो स्टाफ को सैलरी में योगदान दें। ऐसे में छंटनी हो सकती है।

एक लाख से ज्यादा अवैध भारतीयों के लिए कोरोना से बड़ा खतरा भूख; रोज 20 पाउंड कमाते थे, अभी काम नहीं 

ब्रिटेन में एक लाख से ज्यादा भारतीय अवैध रूप से रह रहे हैं। ब्रिटिश सरकार यह मामला मोदी सरकार के सामने उठा चुकी है। लंदन में रह रहे जालंधर के विशाल सरोया ने बताया कि कोरोना से पहले तक अवैध रूप से रह रहे भारतीयों को एक दिन के 20 पाउंड मिल जाते थे। अब इनके पास काम नहीं।

दस्तावेज नहीं होने से ये लोग सरकार से मदद मांग नहीं सकते, इसलिए धार्मिक, सामाजिक संस्थाओं पर निर्भर हैं। इनमें ज्यादातर पंजाबी हैं। बेरोजगारी और भूख से तंग आकर कुछ लोगों ने यह कहकर शरण मांगी है कि भारत में जान को खतरा है।

अवैध तौर पर रह रहे कामगारों को एक चौथाई पगार भी नहीं: ये लोग रेस्टोरेंट, फैक्ट्रियां, होटल, कंस्ट्रक्शन और बिल्डिंग सेक्टर में कार्यरत हैं। सरकार ने एक घंटे का न्यूनतम वेज 8.21 पाउंड किया है पर इन्हें एक चौथाई भी नहीं मिल रहा।

दूसरे देशों के कामगारों की जगह इंग्लैंड वालों को ही प्राथमिकता: सरकार पर ब्रिटिशर्स को ही रोजगार देने का दबाव है। स्कॉटलैंड में रह रहे कुलबीर सिंह ने कहा कि बाहरी देशों से आए कामगारों की जरूरत खत्म नहीं हो सकती। नेशनल हेल्थ सर्विस में 12% गैर-ब्रिटिश हैं।



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