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  • ईशा फाउंडेशन के सबसे प्रसिद्ध बैल जिसकी अप्रैल में हो चुकी है मौत, उसी की पेंटिंग है भैरव

दैनिक भास्कर

Jul 07, 2020, 01:30 PM IST

कोयंबटूर. ईशा फाउंडेशन के संस्थापक जग्गी वासुदेव की एक और पेंटिंग “भैरव” 5.1 करोड़ रुपए में नीलाम हुई। कुछ दिनों पहले उनकी एक पेंटिंग 4.1 करोड़ रुपए में नीलाम हुई थी। ये सारी राशि उन्होंने बीट दी वायरस नाम के फाउंडेशन को दान कर दी है, जो कोरोना वायरस से लड़ने में लोगों की, खासतौर पर ग्रामीण लोगों की मदद कर रहा है। 

ये पेंटिंग ईशा फाउंडेशन के प्रसिद्ध बैल को श्रद्धाजंलि देने के लिए बनाई गई थी। सोमवार को नीलामी की ऑनलाइन बोली के खत्म हुई, जिसकी आखिरी बोली 5.1 करोड़ रुपए थी। एक महीना पहले ‘भैरव’ पेंटिंग को ऑनलाइन नीलामी के लिए रखा गया था। ग्रामीण तमिलनाडु में भुखमरी रोकने के ईशा आउटरीच के दैनिक जमीनी प्रयास को 5.1 करोड़ का दान देकर योगदान देने वाला, सद्गुरु की अनोखी कलाकृति का मालिक बन गया। 

सद्गुरु की पेंटिंग भैरव, जिसकी नीलामी 5.1 करोड़ रुपए में हुई है।

यह पूरी तरह से जैविक पदार्थों से बनाई गई है। यह दूसरी कलाकृति है जो सद्गुरु ने ईशा आउटरीच के प्रयासों के लिए प्रदान की है, जिनमें ग्रामीण तमिलनाडु में हजारों लोगों को रोजाना भोजन और प्रतिरोध क्षमता बढ़ाने वाला पेय दिया जाता है और स्वास्थ्यकर्मियों को पीपीई किट्स प्रदान किए जाते हैं। इसके अलावा, पूर्व तैयारी के रूप में बनाए गए आइसोलेशन वार्ड के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर का सहारा दिया गया है।

सद्गुरु जग्गी वासुदेव के मुताबिक ग्रामीण भारत में रोजाना कमाई करने वालों को, जिनकी कोई आजीविका नहीं बची है, पोषण प्रदान करने के हमारे प्रयासों का हर दिन हजारों लोगों तक विस्तार हो रहा है। वंचित वर्ग को भोजन प्रदान करने के लिए धन जुटाने के इस प्रयास में, यह पेंटिंग एक अर्पण है। 

  • पहली पेंटिंग 4 करोड़ में नीलाम

‘भैरव’ ईशा के अति-प्रिय बैल को सद्गुरु की श्रद्धांजलि है जो अप्रैल में गुजर गया। सद्गुरु ने कलाकृति की पृष्ठभूमि बनाने के लिए गोबर का उपयोग किया है जबकि कलाकृति के लिए कोयला, हल्दी और चूने का इस्तेमाल किया है। सद्गुरु की ‘टू लिव टोटली’ नाम की पहली पेंटिंग कैनवास पर एक अमूर्त तैलचित्र थी और इसकी नीलामी में 4.14 करोड़ मिले थे। इन दोनों पेंटिंग से प्राप्त धन से ईशा आउटरीच के ‘बीट दी वायरस’ अभियान के तहत रोजाना भोजन वितरण को जारी रखने में सहायता मिलेगी। यह अभियान तीन महीनों से ग्रामीण समुदायों को भुखमरी से बचा रहा है।



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