- एक्सपर्ट कहते हैं, हर 5 में से 1 कोरोना के मरीज को वायरस से उबरने में 1 महीना लग सकता है लेकिन कई मामलों में 3 महीने लग रहे हैं
- संक्रमण खत्म होने के 3 महीने बाद तक साइड इफेक्ट दिख रहे, 14 हफ्तों से ज्यादा रहने वाले संक्रमण को ‘लॉन्ग कोविड’ नाम दिया गया है
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दैनिक भास्कर
Jun 27, 2020, 10:52 AM IST
अस्पताल का आईसीयू यानी वो जगह जहां मरीज को तभी लाया जाता है, जब उसकी हालत नाजुक होती है। कोरोना महामारी के दौर में इसकी तस्वीर थोड़ी बदली है। अब आईसीयू में मरीजों की जान बचाने वाले डॉक्टर खुद को भी वायरस से दूर रखने की जद्दोजहद में फंसे हैं।
आईसीयू में इलाज के दौरान मरीजों से फैले कोरोना के कण उनके चारों ओर बढ़ रहे हैं। वैज्ञानिक भाषा में इसे ‘वायरस लोड’ का नाम दिया गया है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, वायरस लोड सबसे ज्यादा आईसीयू में होता है, इसके बाद दूसरे वार्ड में।
ब्रिटेन के रॉयल कॉलेज ऑफ फिजिशियंस में हुई हालिया शोध कहती है कि अस्पताल के एक चौथाई से अधिक डॉक्टर बीमार हैं या कोविड-19 के कारण क्वारैंटाइन में हैं। चिकित्सा जगत की विश्वसनीय वेबसाइट मेडस्केप के मुताबिक, ब्रिटेन में कोविड-19 से मरने वाले हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स का आंकड़ा 630 की संख्या को पार कर गया है।
डॉक्टर्स के लिए वायरस लोड का संकट बढ़ रहा है क्योंकि ये मरीजों के सैम्पल ले रहे हैं। मरीजों को ऑक्सीजन दे रहे हैं। मरीजों का चेकअप कर रहे हैं। इस दौरान वायरस के कण मरीज से डॉक्टर्स तक पहुंच रहे हैं। एक रिसर्च के मुताबिक, मेडिकल प्रोफेशनल्स 7 से 8 घंटे की नींद नहीं पूरी कर पा रहे हैं। यह स्थिति संक्रमण का खतरा बढ़ाती है और हार्ट डिसीज, डायबिटीज और स्ट्रोक की आशंका बढ़ती है।
7 सलाह : हेल्थ प्रोफेशनल्स पर वायरल लोड के असर को कम करने की
लैंसेट जर्नल में प्रकाशित रिसर्च में शोधकर्ताओं वायरल लोड को कम करने के लिए ये सलाह दी हैं-
- संक्रमित चीजों को वैज्ञानिक तरीके से डिस्पोज किया जाए।
- पीपीई को पहनने और उतारने की ट्रेनिंग दी जाए।
- मोबाइल फोन को डिस्पोजेबल प्लास्टिक बैग में रखा जाए।
- ट्रांसमिशन रोकने के लिए मरीज को अधिक लोगों से न मिलने दिया जाए।
- फैमिली मेम्बर्स अपने मरीज या डॉक्टर से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से बात करें।
- आईसीयू के कमरे हवादार होने चाहिए, इसमें प्रेशर नहीं बनना चाहिए।
- एक वार्ड से दूसरे वार्ड की टीम के बीच सोशल डिस्टेंसिंग बरकरार रहे।
आईसीयू वार्ड में वायरस लोड से जूझने वाले डॉ. जेक ने बताई आपबीती
1. लॉन्ग कोविड का पहला मामला: ड्यूटी के एक हफ्ते बाद ही दिखने लगे लक्षण
डॉ. जेक स्यूट की उम्र 31 साल है। इनकी तैनाती आईसीयू वार्ड में हुई थी। 3 मार्च को इनकी ड्यूटी कोरोना से जूझ रहे लोगों को बचाने में लगाई गई थी। 20 मार्च को पहली बार कोरोना के लक्षण दिखे। संक्रमण खत्म होने के बाद भी जेक इसके साइड इफेक्ट से जूझ रहे हैं। हफ्ते में 4 से 5 बार जिम जाने वाले जेक 3 महीने बाद भी सीने में दर्द, सांस लेने में तकलीफ, मेमोरी लॉस, आंखों की घटनी रोशनी से परेशान हैं। हालत ऐसी है कि वह अब तक काम पर नहीं लौट सके हैं।
वह कहते हैं कि जब मैंने पहले तीन दिन बेड पर गुजारे तो ऐसा लगा कि मैं मरने वाला हूं, सब कुछ काफी परेशान करने वाला था। अभी भी मेरे पैरों और हाथों में काफी दर्द रहता है। तब से हालत में सुधार तो हुआ है लेकिन बेहद धीमी गति से।
डॉ. जेक फेसबुक के उस ग्रुप से जुड़े हैं, जिसमें डॉक्टर समेत 5000 ऐसे लोग हैं जो लम्बे समय से कोरोना से जूझ रहे हैं। 14 हफ्तों से अधिक समय तक रहने वाले संक्रमण को ‘लॉन्ग कोविड’ का नाम दिया गया है। डॉ. जेक कहते हैं कि मैं चाहता हूं वैज्ञानिक इस पोस्ट कोविड सिंड्रोम पर रिसर्च करें और पता लगाएं कि क्यों हजारों लोग इतनी बुरी तरह से प्रभावित हो रहे हैं।
2. लॉन्ग कोविड का दूसरा मामला: संक्रमण खत्म होने के 9 हफ्ते बीते लेकिन 2 घंटे से ज्यादा कम नहीं कर पातीं
लुसी बेली की उम्र 32 साल है। पहली बार कोरोना के लक्षण 27 अप्रैल को दिखे थे लेकिन अब भी वह घर पर दो घंटे ज्यादा देर तक काम नहीं कर पाती हैं। बीमारी के 9वें हफ्ते से गुजर रहीं लुसी कहती हैं कि लोग सोचते हैं अगर आपकी मौत कोरोना से नहीं हुई और 2 हफ्ते निकाल ले गए तो आप बच जाएंगे, लेकिन आप लॉन्ग कोविड से भी गुजर सकते हैं।
लुसी ट्विटर पर लिखती हैं कि हर 20 में से एक इंसान संक्रमण के एक महीने बाद भी रिकवर नहीं कर पा रहा है। मैं 8 हफ्तों के बाद भी इससे उबर नहीं पाई हूं। संक्रमण से पहले मैं स्वस्थ थी मुझे कोई बीमारी नहीं थी। लॉकडाउन हट गया है, सावधान रहें, ऐसा आपके साथ भी हो सकता है।
- लॉन्ग कोविड का असर हेल्थ वर्करों और मरीजों पर पड़ सकता है
इम्पीरियल कॉलेज लंदन में इम्युनोलॉजी विभाग के प्रोफेसर डैने अल्तमेन कहते हैं, कोरोना के लम्बे समय तक दिखने वाले साइड इफेक्ट पर स्टडी हो रही है। डॉ जेक को भी इसमें शामिल करने के लिए बुलाया गया है। इसे समझना बेहद जरूरी है क्योंकि डॉक्टर्स को मरीज देखने जाना ही पड़ता है। इसका असर नेशनल हेल्थ सर्विस के लिए काम करने वाले हेल्थ वर्कर और मरीजों पर पड़ सकता है।